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________________ गाहा निज्जिय-सनीर- जीमूय-घोस-गंभीर- भारईए तओ। तीइ परिसाइ भयवं पारद्धो देसणं काउं ।। ८१।। संस्कृत छाया निर्जित-सनीर-जीमूतघोषगम्भीरभारत्या ततः । तस्यां पर्षदि भगवान् प्रारष्यो देशनां कर्तुम् ।।८१।। गुजराती अर्थ पाणीथी अरेला मेधनी गर्जनाने पराजित करेली गंधीट वाणी वडे ते सध्यामां केवली भगवाने उपदेश आपवानी शरुआत की. हिन्दी अनुवाद पानी से भरे मेघ की गर्जना को भी पराजित करती हुई अपनी गंभीर वाणी द्वारा उस सभा में केवली भगवान ने उपदेश देना प्रारंभ किया। गाहाअवि य गय-कलह-कन्न-चवला लच्छी मणुयाणमाउयमणिच्चं । जोव्वणमवि मणुयाणं सहसत्ति जरा अभिद्दवइ ।।८।। रोग-सय-पीडियं तंपि जोव्वणं जाइ जीव-लोगम्मि । इट्ठ-वियोगा-ऽणि?-प्पओग-दुक्खेहि केसिंचि ।। ८३।। युग्मम् ।। संस्कृत छाया अपि च गजकलभकर्णचपला लक्ष्मीर्मनुजानामायुष्यकमनित्यम् । यौवनमपि मनुजानां सहसेति जराऽभिद्रवति ।।८२।। रोगशत-पीडितं तदपि यौवनं याति जीवलोके । इष्टवियोगानिष्टप्रयोगदुःखैः केषाञ्चित् ।।८३।। युग्मम् ।। गुजराती अर्थ. लक्ष्मी हाथीना बच्चाना कान जेवी चंचळ छे. मनुष्योनुं आयुष्य अनित्य छे. तथा मनुष्यना यौवनने पण घडपण अचानक नष्ट करे छे. वळी केटलाकनुं ते यौवन पण प्राणीलोकमां इष्टनो वियोग अने अनिष्टना संयोगरूप दुःखोना कारणे सेंकडो टोगोथी पीडित थाय छे. 251
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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