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संस्कृत छाया
उत्पन्नविमलकेवलज्ञानोऽथ सुरवरैः स्तूयमानः । आसन्ने पुनर्ज्वलनप्रभेण सः प्रत्यभिज्ञातः ।।७८ ।। गुजराती अर्थ
उत्पन्न थयेला निर्मळ केवलज्ञानवाळा अने श्रेष्ठ देवो वडे स्तुति कराता मुनिनी नजीकमां जतां ज ज्वलनप्रभे ते मुनिने ओळख्या.
हिन्दी अनुवाद
उत्पन्न हुए निर्मल केवलज्ञान वाले तथा उत्तम देवों द्वारा स्तुति किये जाते हुए मुनि के पास जाते ही ज्वलनप्रभ ने मुनि को पहचाना ।
गाहा
सो एसो मज्झ पिया पहंजणो नाम मुणि- वरो, एवं । सिम्म चित्तगणो तत्तो ते दोवि हरिसेण ।। ७९ ।। ति पक्खिणिउं सम्मं हरिस- वसुद्वंत - बहल - रोमंचा । पणमिय- केवलि - चलणा विणिविट्ठा धरणि वट्टम्मि ।।८० ।। ।। युग्मम् ।।
संस्कृत छाया
स एष मे पिता प्रभञ्जनो नाम मुनिवर एवम् । शिष्टे चित्रगतये ततस्तौ द्वावपि हर्षेण ।। ७९ ।। त्रिः प्रदक्षिणीकृत्य सम्यग् - हर्षवशोत्तिष्ठद्बहल - रोमाञ्चौ प्रणत केवलिचरणौ विनिविष्टौ धरणीपृष्ठे ।। ८० ।। गुजराती अर्थ
ते आ मारा पिता प्रभंजन मुनिवर छे आ प्रमाणे ज्वलनप्रभे ज्यारे चित्र गतिने कहां त्यारे हर्ष सहित त्रण प्रदक्षिणा आपीने सारी रीते हर्षावेशथी ऊभा थयेला रोमांचवाळा ते बन्ने, केवळी भगवंतना चरणकमळमां नमस्कार करीने पृथ्वीतल पर बेठा.
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।। युग्मम् ।।
हिन्दी अनुवाद
ये मेरे पिता प्रभंजन मुनिवर हैं। इस प्रकार ज्वलनप्रभ के चित्रगति से कहने पर हर्षसहित तीन बार प्रदक्षिणा कर के हर्षावेश से रोमांचित वे दोनों केवली भगवंत के चरण में नमस्कार कर के पृथ्वीतल पर बैठे ।
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