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गाहा
वायंत- मउय-मारुय-हल्लंत-सुपल्लवोह-सोहिल्लं ।
पेच्छइ रत्तासोयं महुयरि-गण-विहिय-हलबोलं ।।७६।। संस्कृत छाया
वाद- मृदुकमारुतहल्लत्- सुपल्लवौघ-शोभावन्तम् । प्रेक्षते
रक्ताशोकं मधुकरिगणविहित-हलबोलम् (कलकलम्) ।।७६।। गुजराती अर्थ
मंद मंद वहेता पवन वडे हालता सुंदर पांदडाओना समूहथी सुशोभित अमरीओना समूहथी वाचालित थयेल लाल अशोकवृक्षने जोयुं. हिन्दी अनुवाद
मंद मंद संचरित पवन द्वारा हिलते पल्लवों के समूह से, संदर भौंरों के समूह से मुखरित लाल अशोकवृक्ष को देखा । गाहा
तस्स य अहे निविट्ठो कंचण-पउमम्मि मुणि- वरो दिट्ठो।
विज्जाहर-नर-किन्नर- सुर-विसरेणं नमिज्जंतो ।।७७।। संस्कृत छाया
तस्य चाधो निविष्टः कञ्चनपने मुनिवरो दृष्टः ।
विद्याधर-नर- किन्नर-सुर-विसरेण नम्यमानः ।।७७।। गुजराती अर्थ
ते अशोकवृक्षनी नीचे विद्याधये, मनुष्यो, गंधर्वो, देवताओ तेमज असुरोना समूहथी प्रणाम कराता सुवर्ण कमल पर बेठेला मुनिवरने जोया. हिन्दी अनुवाद
उस अशोकवृक्ष के नीचे विद्याधरों, मनुष्यों, कित्ररों, देवों और असुरों के समूह से पूजित सुवर्णकमल पर बैठे हुए मुनिवर दिखे। गाहा
उप्पन्न-विमल-केवल-नाणो अह सुर-वरेहिं थुव्वंतो । आसन्ने उण जलणप्यहेण सो पच्चभिन्नाओ ।।७८।।
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