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अइ- कल - कूइय- कलयंठि - लट्ठ - कोलाहलाभिरमणीए । परिभमिर - भमर - निउरंब - गरुय झंकार- महुरम्पि ।।७४ एगम्मि वण-निगुंजे फल- भर- विणमंत दुम- सयाइने | पत्तो स कोउगेणं समयं चिय चित्तगइणा उ ।। ७५ ।। । । चतसृभिः कुलकम् ।।
संस्कृत छाया
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प्रेक्षमाणो बहुविधोपवनानि रमणीय तरु - सनाथा । भारण्डचक्रमण्डित - प्रसन्न जल दीर्घिका निवहम् ।।७२।। प्रसृतसितभासानि प्रेक्षमाणो गिरिवरस्य शिखराणि । किन्नर - मिथुन- सुसङगत - कदलीगृहविहितशोभे ।। ७३ ।। अतिकल- कूजित - कलकण्ठिलट्ठ- कोलाहलाभिरमणीये । परिभ्रमणशील- भ्रमर- निकुरम्बगुरुकझङ्कार- मधुरे ।। ७४ ।। एकस्मिन् वन निकुखे फलभर विनमत्- द्रुमशताकीर्णे । प्राप्तः स कौतुकेन समकमेव चित्रगतिना तु ।। ७५ ।। ।। चतुर्भिः कुलकम्।।
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गुजराती अर्थ
भारंड अने चक्रवाक पक्षीओथी शोभित प्रसन्न पाणीनी वावडीओना समूहने तथा मनोहर वृक्षोथी युक्त अनेक प्रकारना उपवनोने जोतो. विस्तृत श्वेत चमकता ऊँचा पर्वतोना शिखरोने जोतो, किन्नरोना युगलथी सुसंगत कदली घरथी शोभायमान, अति मनोहर टहुका करती कोयलना श्रेष्ठ अवाजथी मनोहर, भमतां भमराओना विशाळ गुंजारवथी मधुर, तथा बहु फळना भारथी नमेला सेंकडो वृक्षोथी व्याप्त एक वन निकुंज (गाढ झाडी) मां कौतुकथी चित्रगतिनी साथे ते पहोंच्यो.
हिन्दी अनुवाद
भारंड एवं चक्रवाक पक्षिओं से सुशोभित प्रसन्न जलवावडी के समूह को तथा मनोहर वृक्षों से युक्त नानाविध उपवनों को देखता हुआ विस्तृत श्वेत चमकने वाले ऊँचे पर्वतों के शिखरों को देखते हुए किन्नर युगल से सुसंगत कदलीगृह से सुशोभित, अतिमधुर कूजन करती सुंदर कोयल की श्रेष्ठ ध्वनि से सुन्दर, मडराते हुए भौंरों के विशाल समूह के बड़े गुंजारव से मधुर तथा बहुत फल के भार से नम्र सैकड़ों वृक्षों से व्याप्त एक वन निकुंज में कुतूहलपूर्वक ज्वलनप्रभ चित्रगति के साथ गया ।
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