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________________ गाहा अह परम-पमोएणं तहिं वसंतस्स ससुर-नयरम्मि । भो चित्तवेग! तस्स उ वोलीणा वासरा कइवि ।।७।। संस्कृत छाया अथ परमप्रमोदेन तत्र वसतः श्वशुरनगरे । भोः चित्रवेग! तस्य तु गता वासराः कत्यपि ।।७।। गुजराती अर्थ___ हे चित्रवेग ! हवे ससराना ते नगरमां परम आनन्दपूर्वक रहेता तेना केटलांक दिवसो वित्या. हिन्दी अनुवाद हे चित्रवेग ! ससुर के नगर में परम आनन्दपूर्वक रहते हुए उसके कई दिन बीत गये। गाहा अह अन्नया कयाइवि जलणपहो सालएण संजुत्तो। चित्तगइ-नामएणं नीहरिओ ताओ नयराओ ।।७१।। संस्कृत छाया अथान्यदा कदाचिदपि ज्वलनप्रभः श्यालकेन संयुक्तः । चित्रगति- नामकेन निःसृतस्तस्मान्नगरात् ।।७१।। गुजराती अर्थ हवे एक वखत क्यारेक चित्रगति नामना पोताना साळानी साथे ज्वलनप्रय ते नगरनी बहार गयो. हिन्दी अनुवाद फिर एकबार चित्रगति नाम के अपने साले के साथ ज्वलनप्रभ उस नगर से बाहर निकला। गाहा पेच्छंतो बहुविह-उववणाई रमणीय-तरु-सणाहाई। भारंड-चक्क-मंडिय-पसन्न-जल-दीहिया-निवहं ।।७२।। पसरिय-सिय-भासाइं पेच्छंतो गिरि-वरस्स सिहराई। किन्नर-मिहुण-सुसंगय-कयली-हर-विहिय-सोहम्मि ।।७३।। 247
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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