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हिन्दी अनुवाद
राजा प्रभंजन ने पुत्र ज्वलनप्रभ को यह राज्य देकर तथा पुत्र कनकप्रभ को प्रज्ञप्ति विद्या देकर उसके बाद (प्रभंजन खेचरेन्द्रने) राज्यलक्ष्मी को छोड़कर सुघोषमुनि के चरणों में संयम को स्वीकार किया ।
ज्वलनप्रभ राज्य सुख
गाहा
जलणप्पहोवि भुंजइ राय-सिरिं खयर-नियर-परिकिन्नो।
सयलोरोह- पहाणाइ चित्तलेहाइ समयंति ।। ६२।। संस्कृत छाया
ज्वलनप्रभोऽपि भुनक्ति राजश्रियं खचरनिकरपरिकीर्णः ।
सकलावरोधप्रधानया चित्रलेखया समकमिति ।।६२।। गुजराती अर्थ
विद्याधर समूहथी परिवरेलो ज्वलनप्रय पण अन्तःपुरनी चधी स्त्रीओमां प्रधान चिरलेखानी साथे राज्यलक्ष्मीने योगवे छे. हिन्दी अनुवाद
विद्याधर समूह से घिरा हुआ ज्वलनप्रभ भी अन्तःपुर की सभी रानियों में प्रधान चित्रलेखा के साथ राज्यलक्ष्मी का उपभोग करता है ।
कनकप्रभ ने विद्या तथा अविनय गाहा
कणगप्पहोवि साहिय विज्ज पन्नत्ति-नामियं विहिणा । विज्जा-पभाव-संजाय-गरुय-सामत्थ-वित्थारो ।।६३।। उज्झिय निय-वंस-कमं अणविक्खिय अयस-पडहयं लोए । बहु मनिय अविवेयं अवियारिय दोग्गइ-गमणं ।।६४।। अणवेक्खिय गुरु-भावं अंगीकाऊण तह अदक्खिन्नं । राय-सिरि-लोलुएणं विज्जा-बल-दप्प- भरिएण ।।६५।। जलणप्पहस्स जिट्ठस्स भाउणो पिउ-विदिन-रज्ज-पयं । उद्दालियं तु कणगप्पहेण विज्जा-पभावाओ ।।६६।।
चितसृभिः कुलकम्।।
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