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गाहा
एत्यंतरे सुघोसो चउ-नाणी चारणो मुणी तत्थ ।
विहरंतो संपत्तो भवियाण विबोहणट्ठाए ।। ५९।। संस्कृत छाया
अत्रान्तरे सुघोषश्चतुर्ज्ञानी चारणो मुनिस्तत्र ।
विहरन् सम्प्राप्तो भव्यानां विबोधनार्थाय ।। ५९।। गुजराती अर्थ
सटलीवाटमां चार (मति, श्रुत, अवधि अने मनापर्यव) ज्ञान (ने धारण करनार) वाळा सुघोष नामना चाटणमुनि विहार करता भव्य जीवोनां चोध माटे त्यां पधार्या. हिन्दी अनुवाद
उतने में चार (मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यव) ज्ञान वाले ज्ञानी सुघोष नाम के चारणमुनि (आकाशगामी विद्याधर) विहार करते हुए भव्य जीवों के बोध के निमित्त वहाँ पधारे ।
प्रभञ्जन प्रव्रज्या गाहा
राया पहंजणो अह सुयस्स जलणप्पहस्स अह-रज्जं (अह रज्ज?)।
दाऊण तहा कणगप्पहस्स पन्नत्ति-वर-विज्जं ।।६।। तत्तो. य विणिक्खंतो सुघोस-साहुस्स पाय-मूलम्मि ।
अवहाय राय-लच्छि पहंजणो खयर-रायत्ति ।।६१।। संस्कृत छाया
राजा प्रभञ्जनोऽथ सुताय ज्वलनप्रभाय अदो राज्यम् । दत्वा तथा कनकप्रभाय प्रज्ञप्ति-वरविद्याम् ।।६० ।। ततश्च विनिष्क्रान्तः सुघोष-सायोः पादमूले।
अपहाय राज्य-लक्ष्मी प्रभञ्जन खेचरराज इति ।।६१।। गुजराती अर्थ
राजा प्रभंजने ज्वलनप्रध्य-पुत्रने आ राज्य आपीने तेमज कनकप्रथने प्रज्ञप्ति विद्या आपीने पछी राज्यलक्ष्मीने छोडीने (प्रयंजन खेचरेन्द्र) सुघोषमुनिना चरणमां संयम जीवन स्वीकार्यु,
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