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________________ गुजराती अर्थ वळी कामासक्त प्राणीओ जिनवचनने जाणीने पण जे आरम्भ-परियह (सांसारिक कार्यकलाप)मा वर्ते छे. ते खरेखर आ महामोहनी ज खूची छ! हिन्दी अनुवाद (पुनः) कामासक्तप्राणी जिनवचन सुनने पर भी जो आरम्भ-परिग्रह में ही रहते हैं, अहो ! यह महामोह की ही महानता है । गाहा ताऽलं मम रज्जेणं संसार-निवास- हेउ- भूएण । जाणिय-जिणिंद-वयणस्स हंदि! गुरु-दुक्ख-मूलेण ।।५।। संस्कृत छाया तस्मादलं मे राज्येन संसारनिवास- हेतुभूतेन । ज्ञात-जिनेन्द्रवचनस्य हन्दि! गुरुदुःखमूलेन ।। ५५।। गुजराती अर्थ माटे जिनेन्द्रना वचनने जाणेल एवा मारे संसारनिवासना कारणभूत थारे दुःखना मूळ (कारणरुप) राज्यथी सर्यु । हिन्दी अनुवाद अतः जिनवचन को जाननेवाले मुझे संसार-निवास के हेतुभूत, अति दुःख के मूल कारणरूप राज्य से क्या (लाभ)? गाहा ता सावज्जं वज्जिय पव्वज्जा-उज्जमं करेमि लहुं । किं मह इमिणा दुग्गइ-निबंधणासार-रज्जेण? ।।५६।। संस्कृत छाया तस्मात् सावधं वयित्वा प्रव्रज्योद्यमं करोमि लघु । किं मेऽनेन दुर्गतिनिबन्धनाऽ सार- राज्येन? ।। ५६।। गुजराती अर्थ तेथी हुँ पापकर्मनो त्याग करीने जल्दीथी प्रवज्याने ग्रहण करवा माटे उद्यम कर, हवे मारे दुर्गतिना कारणछप असार स्वा आ राज्य वडे शं? 241
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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