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________________ संस्कृत छाया रूपं च जीवितं यौवनं च सर्वेऽपि बन्धुसम्बन्धाः । एवमनित्या अहो! धिगस्तु संसारवासम् ।। ५२ ।। गुजराती अर्थ रूप, जीवन, यौवन अने बधा स्वजन सम्बंधी आ प्रमाणे अनित्य होय छे. अहो ! आवा संसारवासने धिक्कार थाओ । हिन्दी अनुवाद इसी प्रकार रूप, जीवन, यौवन और सभी स्वजन सम्बन्ध अनित्य हैं । अहो ! ऐसे संसारवास को धिक्कार हो ! गाहा पच्चक्खं हि अणिच्चं नाऊणवि जं थिरं व मन्नंति । विसयाऽसत्ता सत्ता, एयं अविवेय- सामत्थं ।। ५३ ।। संस्कृत छाया प्रत्यक्षं नित्यं ज्ञात्वाऽपि यत् स्थिरमिव मन्यन्ते । विषयासक्ताः सत्त्वा एतदविवेक सामर्थ्यम् ।। ५३ ।। गुजराती अर्थ केम के प्रत्यक्ष (पदार्थों) ने अनित्य जाणीने पण विषयासक्त प्राणीओं जे तेने स्थिर माने छे ते (तेओनी) अविवेकनी ज शक्ति छे. हिन्दी अनुवाद प्रत्यक्ष पदार्थ को अनित्य जानकर भी विषयासक्त प्राणी जो स्थिर की तरह मानते हैं वह उनके अविवेक की ही शक्ति है । (अविवेक की ही प्रगाढ़ता है ) गाहा नाऊणवि जिण- वयणं आरंभ- परिग्गहेसु वट्टंति । कामासत्ता जं पुण अहो! महा- मोह- माहप्पं । । ५४ । । संस्कृत छाया ज्ञात्वाऽपि जिनवचनमारम्भ- परिग्रहेषु वर्तन्ते । कामासक्ता यत्पुनरहो! महामोह माहात्म्यम् ।। ५४ । । 240
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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