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________________ गाहा दठूण तं विलीणं खणेण राया विचिंतए एवं । एवंविहा नराणं लच्छीओ चवल-रूवाओ ।।५० ।। संस्कृत छाया दृष्ट्वा तं विलीनं क्षणेन राजा विचिन्तयत्येवम् । एवंविधा नराणां लक्ष्म्यश्चपलरूपाः ।।५० ।। गुजराती अर्थ क्षणमात्रमा विखरायेला तेने (मेघने) जोईने राजाए आ प्रमाणे विचार कों, अरे ! मनुष्योनी सम्पत्तिओ आवी चंचळ स्वछपवाळी होय छे । हिन्दी अनुवाद क्षणमात्र में बिखरे हुए उसे (मेघ को) देखकर राजा ने इस प्रकार विचार किया, अरे ! मनुष्यों की लक्ष्मी भी ऐसी ही चंचल (स्वभाववाली) होती है । गाहा जह एसो अब्भ-लवो खणेण दिह्रो पुणो पणट्ठोत्ति । तह सव्वेवि पयत्था खणमित्ताणंद-संजणणा ।।५१।। संस्कृत छाया यथा एषोऽभ्रलवः क्षणेन दृष्टः पुनः प्रणष्ट इति । तथा सर्वेऽपि पदार्थाः क्षणमात्रानन्दसञ्जननाः ।।५१।। गुजराती अर्थ जेवी चीते आ मेघ क्षणमा जोवायो अने वळी नाश पामी गयो तेवी रीते बधा ज पदार्थो क्षणमात्र ज आनन्द आपनार होय छे । हिन्दी अनुवाद जिस तरह यह मेघ एक क्षण में दिखाई दिया और तुरंत नष्ट हो गया ठीक उसी तरह सभी पदार्थ पल भर आनन्द देने वाले होते हैं ! गाहा रूवं च जीवियं जोव्वणं च सव्वेवि बंधु-संबंधा । एवमणिच्चा अव्वो! धिरत्थु संसार-वासस्स ।।५२।। 239
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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