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अह चिंतिउं पयतो मणोहरो हंदि ! एस आगारो । एयागिईए ता हं कारेमि जिणालयं रम्मं । । ४८ ।। संस्कृत छाया
अथान्यदा कदाचिदपि खचराधिपतिः प्रभञ्जनो दृष्टवा । गगने शशाङ्कधवलं देवकुल- गौरवं गेहम् । । ४७ । । अथ चिन्तयितुं प्रवृत्तो मनोहरो हन्दि ! एतदागारम् । एतदाकृत्या तस्मादहं कारयामि जिनालयं रम्यम् ।।४८ ।। गुजराती अर्थ
क्यारेक विद्याधराधिपति प्रभंजने आकाशमां चन्द्र समान उज्ज्वल मन्दिर जेवा सफेद घरने जोईने विचारवा लाग्यो, अहो ! आ घर खरेखर मनोहर छे. तेथी आवी ज आकृति प्रमाणे हुं मनोहर जिनालय बनावडावीश. हिन्दी अनुवाद -
फिर एक दिन विद्याधराधिपति प्रभंजन चन्द्र जैसे उज्ज्वल और देवालय जैसे सफेद घर को आकाश में देखकर सोचने लगा- निश्चय ही यह मनोहर ( भव्य ) गृह है, इसी सुन्दर आकृति के अनुसार मैं भी मनोहर जिनगृह बनवाऊँगा । प्रभञ्जन चिंतन
गाहा
मणि- कुट्टिमम्मि तत्तो आलिहिउं उज्जओ जया राया । ताव य झत्ति विलीणो पवण- हओ जलहरो सव्वो ।। ४९ । ।
संस्कृत छाया
मणिकुट्टिमे तत आलेखितुमुद्यतो यदा राजा ।
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तावच्च झटिति विलीनः पवन हतो जलधरस्सर्वः ।। ४९ ।। गुजराती अर्थ
पछी मणिजडित फर्स ऊपर आलेखन करवा माटे ज्यां राजा तैयार थयो, तेटली वारमां जल्दीथी पवनथी हणायेल सर्व मेघ विलीन थई गयो ! हिन्दी अनुवाद -
(ऐसा सोचकर ) मणि जड़ित फर्श पर उसे चित्रित करने हेतु राजा तैयार हुआ उतने में शीघ्र ही वायु से आहत सारे बादल बिखर गये !
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