SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दत्ता खचरप्रभञ्जन-सुताय ज्येष्ठाय रूपयुक्ताय । ज्वलनप्रभाय, तेनापि परिणीता परमप्रीत्या ।। ४५।। त्रिभिः कुलकम्।। गुजराती अर्थ पोताना पाईना वचनने याद करती चन्धुसुन्दरी देवीर पोतानी पुत्री चित्रलेखाने जुवान थयेली जाणीने पोताना पति भानुगतिने भाईना ते वचन कहे छे. त्यारे भानुगतिर पोतानी पुत्री चित्रलेखाने विद्याधर प्रभंजनना, रुपवान (ज्येष्ठ) पुत्र ज्वलनप्रथने आपी अने तेणे पण परम प्रीतिपूर्वक तेणीने परणी। हिन्दी अनुवाद अपनी पुत्री चित्रलेखा को यौवन प्राप्त देखकर, अपने भाई के वचन को याद करती बन्धुसुन्दरी देवी ने अपने पति भानुगति से भाई की बात कही, तब भानुगति ने भी (इस बात को सुनकर) विद्याधर प्रभंजन के सुंदर ज्येष्ठ पुत्र ज्वलनप्रभ को अपनी पुत्री चित्रलेखा दी और उसने भी परम प्रीति से उसके साथ विवाह किया । गाहा सुर-नंदणम्मि नयरे नीया अह तीए नेह-सहियाए । सह विसए भुंजतो चिट्ठइ देवो व्व दिय-लोए ।।४६।। संस्कृत छाया सुरनन्दने नगरे नीताऽथ तया स्नेहसहितया । सह विषयान् भुञ्जन् तिष्ठति देव इव दिव्यलोके ।।४६।। गुजराती अर्थ हवे तेणीने सुरनन्दन नगरमां लई गयो अने देवलोकमां देवनी जेम स्नेहवाळी तेणीनी साथे विषयोने भोगववा लाग्यो. हिन्दी अनुवाद ज्वलनप्रभ उसे सुरनन्दन नगर ले गया और देवलोक में देव की तरह, स्नेहवाली उसके साथ विषयसुख भोगने लगा । गाहा अह अन्नया कयाइवि खयराहिवई पहंजणो दट्टुं । गयणे ससंक-धवलं देव-उल-गोरयं गेहं ।। ४७।। 237
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy