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संस्कृत छाया
किञ्च धन्योऽसि त्वं यस्यास्ति तावदन्योन्यवचनसञ्चारः । तथा देवताया वचन माशाया निबन्धनमस्ति । । १२ । । गुजराती अर्थ
अने वळी तुं धन्य छे केमके तारो परस्पर वार्तालाप थयो छे तेमज देवतानुं वचन आशानुं कारण पण छे.
हिन्दी अनुवाद
और फिर तुम धन्य हो, क्योंकि तुम्हारा प्रिया के साथ परस्पर वार्तालाप
हुआ है और देवता का वचन आशा का कारण भी है ।
गाहा
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तह एग-नगर- वासो अवरोप्पर - भाव- जणण- सगब्भो । ता कीस कुणसि सोयं, धन्नो तं पुन्नवंतो य ।। १३ ।। संस्कृत छाया
तथा एकनगरवासः परस्पर- भाव- जननसगर्भः ।
तस्मात् कस्मात् करोषि शोकं धन्यस्त्वं पुण्यवाँश्च ।। १३ ।। गुजराती अर्थ
तथा परस्पर भावनी उत्पतिथी गर्भित एवं एक नगरमा रहेठाण छे पछी शा कारण थी धन्य अने पुन्यवान एवो तुं शोक करे छे ? हिन्दी अनुवाद
तथा परस्पर भावों की उत्पत्ति से गर्भित एक ही नगर में आवास है तो फिर धन्य और पुण्यवान तुम शोक क्यों करते हो ।
गाहा
मह पुण पुत्र- विहूणस्स कहवि तद्दंसणम्मि जा आसा । तीएवि हु दालिद्दं तहवि हु धारेमि निय- पाणे ।। १४ । । संस्कृत छाया
मम पुनः पुण्यविहीनस्य कथमपि तद्दर्शने याऽऽआशा । तस्या अपि खलु दारिद्र्यं तथापि खलु निजप्राणान् । । १४ ।।
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धारयामि