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८ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००७ विघटन की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई, जो क्रमश: प्रखर होती गयी। आठवीं से दसवीं शती ई० के मध्य पाल, प्रतिहार, पल्लव, चालुक्य, राष्ट्रकूट एवं कार्कोट प्रमुख राजनीतिक शक्तियाँ थीं। १००० ई० के अन्त में उत्तर भारत में राजनीतिक दृष्टि से कोई भी ऐसी शक्ति नहीं रही, जो भारत को एकता के सूत्र में आबद्ध रख सकती। दिल्ली के तोमर, राजस्थान के चाहमान या चौहान (९७३-११९२ ई०), मालवा के परमार (१० वीं शती से १२५६ ई०), वाराणसी और कन्नौज के गहड़वाल (१०७५-११९३ई०), गुजरात के चौलुक्य या सोलंकी (९७४-१२१३८ ई०), जेजाकभुक्ति के चन्देल (९वीं शती-१२०० ई०), कल्चुरी या चेदि (८७५-११९५ई०) तथा कई अन्य छोटे-छोटे राजवंशों की उत्तर भारत में स्थापना हुई, जो देशहित की अपेक्षा निजी सत्ता
और राज्य विस्तार में संलग्न रहे। इनमें प्रतिहार, कल्चुरी, चन्देल, परमार और सोलंकी विशेष शक्तिशाली राजवंश थे। इसी प्रकार पूर्वी भारत में पाल, सेन, चन्द्र, वर्मन और गंगा वंशों के शासक आपस में संघर्षरत थे। उत्तर भारत के समान दक्षिण भारत में भी पल्लव, चालुक्य और राष्ट्रकूट जैसे महान राजवंशों के बीच संघर्ष का क्रम चलता रहा। उल्लेखनीय है कि संघर्षों के बाद भी कला और संस्कृति का उन्नयन होता रहा, जिसका प्रतिफल महाबलिपुरम् (मामल्लपुरम् ), काँचीपुरम् , बादामी, अयहोल, पट्टडकल तथा एलोरा के मन्दिरों और उन पर उत्कीर्ण मूर्तियों के रूप में द्रष्टव्य है। इन राजवंशों के पतन के बाद पश्चिमी चालुक्य (९७३-११८९ई०) चोल (८५०-१२६७ई०), यादव (११९०-१२९४ ई०), काकतीय (लगभग ११९७१३२३ई०), पूर्वी चालुक्य (६३०-९७०ई०), पाण्ड्य (११९०-१३३०ई०) तथा होयसल (लगभग ११००-१२९१ ई०) जैसे स्वतन्त्र राजवंशों का उदय हुआ।
वास्तुकला, मूर्तिकला एवं प्रतिमालक्षण की दृष्टि से भी मध्य युग बहुआयामी विकास का युग रहा है। पूर्वकालीन भारतीय कला की समृद्ध परम्परा मध्यकाल में एक विराट आयाम तथा क्षेत्रीय विशिष्टताओं की दृष्टि से उत्कर्ष की अवस्था में पहुँच गयी थी। ७ वीं से १३ वीं शती ई० के मध्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जिन प्रसिद्ध मन्दिरों और उनके विभिन्न भागों पर प्रभूत देवमूर्तियों का रूपायन हुआ, उनमें कश्मीर का मार्तण्ड, ओसिया और ग्यारसपुर के प्रतिहार, भुवनेश्वर तथा कोणार्क के सोम और गंगवंशी, खजुराहों के चन्देल, कान्चीपुरम् के पल्लव, बादामी, अयहोल और पट्टडकल के चालुक्य, एलोरा के राष्ट्रकूट, तंजौर एवं गंगकोण्डचोलपुरम् के चोल, मोढेरा, आबू तथा सोमनाथ के सोलंकी, हलेबिड, बेलूर, अमृतापुर तथा सोमनाथपुर के होयसल मन्दिर सर्वप्रमुख हैं। नालन्दा, राजगीर, कुर्किहार, खिचिंग, रत्नगिरि, दिनाजपुर, विक्रमपुर, नियामतपुर, पहाड़पुर एवं मयूरभंज तथा बिहार, बंगाल, उड़ीसा और बंगलादेश के अन्य कई स्थलों से बौद्ध प्रतिमाओं के विपुल प्रमाण मिले हैं।