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श्रमण, वर्ष ५८, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर २००७
मध्यकालीन भारतीय प्रतिमालक्षण
डॉ० मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी*
प्रतिमालक्षण का अध्ययन किसी देश और काल के धार्मिक इतिहास और सामाजिक-धार्मिक स्तर पर लोगों के मध्य के पारस्परिक सौहार्द एवं कटुतापूर्ण सम्बन्धों के विशद एवं प्रत्यक्ष जानकारी की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। मध्यकाल की परिवर्तित क्षेत्रीय राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों और सोच में इस अध्ययन की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। क्षेत्रीय राजवंशों के अभ्युदय और राजनीतिक स्तर पर छोटे-छोटे क्षेत्रों में सत्ता - विभाजन तथा क्षेत्र - विस्तार के लिए उनमें निरन्तर होने वाले युद्धों, समझौतों एवं षड्यंत्रों के कारण क्षेत्रीय सांस्कृतिक चेतना और विशिष्टता का भाव भी क्रमशः बढ़ता गया । धर्म और उससे सम्बन्धित देवता तथा उनके स्वरूप एवं लक्षण समकालीन समाज की सोच और आवश्यकता से निर्दिष्ट और वस्तुतः उसी की मूर्त अभिव्यक्ति रहे हैं। अतः परिवर्तित क्षेत्रीय सांस्कृतिक चेतना के कारण देव-स्वरूपों और उनकी मूर्तियों का आधार विषय-वस्तु एवं लक्षण की दृष्टि से और भी व्यापक हो गया। विभिन्न सम्प्रदायों के अभ्युदय तथा उनकी पारस्परिक श्रेष्ठता की सोच के कारण उनमें कटुता का भाव भी प्रकट हुआ, जिसके शमन और समाधान हेतु धार्मिक सामञ्जस्य और समरसता दर्शाने वाली अद्वय या संघात मूर्तियों का लगभग सभी क्षेत्रों में अनेकत्र उत्कीर्णन हुआ।
७ वीं से १३ वीं शती ई० के मध्य विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में मन्दिरों का निर्माण हुआ। मन्दिरों के विभिन्न भागों पर उकेरी गई असंख्य देव-मूर्तियों में अभिव्यक्त लक्षणपरक भेद और उनकी विविधता के अध्ययन की दृष्टि से मध्यकाल विशेष समृद्ध रहा है। मध्यकालीन प्रतिमालक्षण की विशिष्टताओं की चर्चा के पूर्व तत्कालीन राजनीतिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का संक्षिप्त उल्लेख यहाँ प्रासंगिक प्रतीत होता है।
गुप्तकाल के बाद लगभग ६०० से १००० ई० के मध्य का काल कई दृष्टियों से उपलब्धियों और विकास का माना जाता है, किन्तु राजनीतिक दृष्टि से क्षेत्रीय शक्तियों के अभ्युदय और उनमें निरन्तर होने वाले आपसी संघर्षों के कारण इसे राष्ट्रीय विघटन का काल भी कहा जाता है । हर्षवर्धन की मृत्यु (लगभग ६४६ ई०) के बाद और गुप्त राजवंशों के समान किसी सामर्थ्यशाली केन्द्रीय शक्ति के अभाव में * आचार्य एवं अध्यक्ष, कला इतिहास विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी