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________________ श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ / अप्रैल-सितम्बर २००७ ग्रन्थ में ज्वालामालिनी देवी की स्तुति, मंत्र एवं सिद्धि विधान वर्णित है। प्रथम पद्य में भगवान चन्द्रप्रभ की वन्दना की गई है। यहां ज्वालामालिनी देवी का स्वरूप बतलाते हुए कहा गया है कि उनका शरीर श्वेत वर्ण है, वाहन महिष है, वे उज्ज्वल आभूषणों से युक्त हैं, उनके आठ हाथ हैं, जिनमें क्रमश: त्रिशूल, पाश, मत्स्य, धनुष, मंडल, फल, वरद (अग्नि) और चक्र धारण किये हैं। इस ग्रन्थ में ज्वालामालिनी देवी के सिद्धि विधान का विस्तार से कथन करने के बाद कौमारी देवी, वैष्णवी देवी, बाराही देवी, ऐन्द्री देवी, चामुण्डादेवी एवं महालक्ष्मी देवी की पूजन विधि कही गई है। ग्रन्थ का वैशिष्ट्य दिखाने के लिए विदुषी कमलश्री का वृत्तान्त दिया गया है। " कमलश्री ग्रह-बाधा से पीड़ित थीं, जिन्हें हेलाचार्य ( एलाचार्य) ने नीलगिरि के शिखर पर ज्वालामालिनी देवी की आराधना से मंत्र प्राप्त कर बाधा रहित किया था। : ३. रिष्ट समुच्चय यह आचार्य दुर्गदेव की रचना है। इसकी भाषा शौरसेनी प्राकृत है । गाथाओं की संख्या २६१ है। ग्रन्थोल्लेख (२६०-६१ ) के अनुसार लक्ष्मीनिवास राजा के राज्य में कुम्भनगर के शान्तिनाथ जिनालय में संवत् १०८९ श्रावण शुक्ला एकादशी को मूल नक्षत्र में इस ग्रन्थ की रचना हुई थी। इसमें अनेक मंत्र आये हैं। वैसे मूलत: यह निमित्त विषयक रचना मन्त्रमहोदधि है। यह ग्रन्थ वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, जयपुर से प्रकाशित है। ४. विद्यानुशासन इसके कर्ता जिनसेन के शिष्य मल्लिषेण हैं। ये बड़े मन्त्रवादी थे। 'महापुराण' में इन्होंने स्वयं को 'गारुडमंत्रवादवेदी' लिखा है। विद्यानुशासन मंत्रशास्त्र का सबसे बड़ा ग्रन्थ है। इसमें चौबीस अधिकार तथा पाँच हजार मंत्र हैं। १ २ इसमें लगभग सात हजार श्लोक हैं। एच० आर० कापडिया ने इसे संग्रह ग्रन्थ कहा है। १३ इसमें मल्लिषेण के अन्य ग्रन्थों का अधिकांश भाग पाया जाता है। एच० आर० कापडिया ने संभावना व्यक्त की है कि विद्यानुशासन द्राविड़ संघ के मतिसागर की रचना हो सकती है। इस ग्रन्थ का सम्पादन व प्रकाशन सम्भवतः आचार्य कुन्थुसागर जी महाराज की प्रेरणा से कुछ वर्ष पूर्व हुआ था। किन्तु प्रयत्नशील रहने पर भी मुझे उसके विषय में कोई जानकारी नहीं मिल पायी। इसका रचनाकाल विक्रम संवत् १११० के आस-पास है। ५. भैरव - पद्मावती - कल्प यह भी मल्लिषेण (१०/५६) की रचना है। इन्होंने स्वयं को जिनसेन का शिष्य लिखा है । (१०/५५) ग्रन्थ के पुष्पिका वाक्य में इन्हें 'उभयभाषाकविशेखर'
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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