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________________ जैन परम्परा में मंत्र-तंत्र : कहा गया है। ग्रन्थकार ने ग्रन्थ की श्लोक संख्या चार सौ (१० / ५६) लिखी है, किन्तु प्रकाशित संस्करण में यह संख्या ३०८ है । इस पर बन्धुषेण की संस्कृत टीका है। यह ग्रन्थ प्रो० के० वी० अभयंकर द्वारा सम्पादित तथा साराभाई मणिलाल नवाब गुजराती अनुवाद के साथ सन् १९३७ में अहमदाबाद से तथा मूल एवं चन्द्रशेखर शास्त्री के हिन्दी अनुवाद के साथ मूलचन्द्र किशनदास कापड़िया द्वारा १९५२ में सूरत से प्रकाशित है। इसकी दो हस्तलिखित प्रतियाँ जैन सिद्धांत भवन, आरा में संग्रहीत हैं । १४ ग्रन्थकार तथा टीकाकार दोनों ने सर्वप्रथम पार्श्वनाथ को नमन किया है। ग्रन्थ दश अधिकारों में विभाजित है । (१/५) पहले मन्त्रिलक्षण नामक अधिकार में साधक की योग्यता का निरूपण किया गया है । दूसरे सकलीकरण अधिकार में अंगन्यास, दिक्बन्धन, ध्यान, अमृतस्थान आदि के विषय में बतलाया गया है। ध्यान के लिए पद्मावती की जिस मुद्रा का अंकन किया गया है, वैसे लक्षणों से युक्त पद्मावती की प्रतिमा ईडर के जैन मन्दिर में बतायी गई है।“ तीसरे देव्यर्चनाधिकार में शान्तिकादि षट्कर्मों के निमित्त दिशा, काल, आसन, पल्लव और अंगुलि का विधान कहा गया है। अनन्तर यंत्र लेखन - विधि, आह्वान, स्थितीकरण, सत्रिधीकरण, पूजाविधान और विसर्जन रूप पंचोपचारी पूजाविधि वर्णित है। मूलमंत्र के तीन लाख जाप पद्मपुष्पों से करने पर पद्मावती देवी की सिद्धि हो जाती है । पश्चात् षडक्षरी, त्र्यक्षरी, एकाक्षरी मंत्र, होम विधान तथा पार्श्वनाथ यक्ष को सिद्ध करने की विधि बतायी गई है। चौथे अधिकार में बारह यंत्रों एवं उनके मंत्रों का कथन है। पांचवें अधिकार में स्तम्भन मंत्रों एवं यंत्रों का विधान है। छठवें अधिकार में अंगनार्षण मंत्र-यंत्र बताये गये हैं। सातवें अधिकार में वशीकरण के अनेक मंत्रों और यंत्रों का वर्णन है। आठवें अधिकार में दर्पण निमित्त मंत्र एवं साधनविधि, दीप निमित्त और कर्णपिशाची की सिद्धि का विधान है। नवमें वशीकरण तंत्र नामक अधिकार में अनेक औषधीय तन्त्रों का उल्लेख है, जो स्त्री-पुरुषों को आकर्षित करने तथा वश में करने के लिए उपयोगी बताये गये हैं। इनमें जनमोहन तिलक, चूर्ण भक्षण, अंजन विधान, धूतजय योग, जलूका प्रयोग आदि के कथन प्रमुख हैं। दशवें अधिकार में अष्टांग 'गारूड़-विद्या' का प्रतिपादन है। इसमें सर्प को वश में करने, पकड़ने, निर्विष करने आदि के मंत्र हैं। यहां नागप्रेषण, स्तम्भन, कुण्डलीकरण, कुंभप्रवेशन, रेखा, विषभक्षण आदि का विस्तार से निरूपण किया गया है। ग्रन्थ के अन्त में मंत्रदान-विधि कही गई है, इसमें सम्यक्त्व रहित पुरुष को मंत्र देने का निषेध है। पूरे ग्रन्थ में ४६ यंत्रों का उल्लेख पाया जाता है। ६. ज्वालिनी - कल्प इसके कर्ता भी मल्लिषेण हैं। एच० आर० कापड़िया ने इसका रचना काल वि०सं० १११० के लगभग माना है। १६ 'अनेकान्त' वर्ष - १, पृ० ४२८ पर, जैनेन्द्र
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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