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________________ पुरदो भवदो कालिदास के नाटकों में प्रयुक्त प्राकृत के तद्धित प्रत्यय ११२ एसो उआरूढराओ उअभोअक्खमो पुरदो १९ दे वट्टई। दुक्खेण मे चलणा पुरो १२० पवट्टंति । अलं भवदो १२१ धीरं उज्झिअ परिदेविदेणं भवदो१२२ परिदेविअं सुणिअ भुज्जवत्ते अणुराअसूअआ अक्खरा अहिलिहिअ विसज्जिआई भवे । णत्थि भवदो १ २ ३ अवराहो । ७. हिं प्रत्यय - प्राकृत में इदम् और एतद् को छोड़कर अन्य सर्वादि अदन्त सर्वनामों से परे आने वाले ङि (प्रत्यय) को विकल्प से हिं आदेश होता १२४ है । कालिदास ने अपने नाटकों में प्राकृत के हिं प्रत्यय से युक्त रूपों का अनेक स्थलों पर प्रयोग किया है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं कहिं कहिं १२५ दाणिं वो सिस्सा। कहिं १२६ क्खु पहि १२७ वि अदिद्वेण भत्तुणा होदव्वं । कहिं कहिं १२८ णु क्खु देवी हवे । अह कहिं १२९ देवी। १३० सहीअणो कहिं संगीदवावारं उज्झिअ कहिं ? ३१ पत्थिदासि ? क्खु भवे ? तुमं कहिं १ ३२ पत्थिदो ? कहिं ३३ क्खु अणिदिट्ठकालणं गच्छीअदि ? कहिं १३४ क्खु सो आवण्णाणुकम्पी भवे ? : ६९ कहिं २ ३ १२३५ सो मम हिअअचोरो । कहि १३६ गदो सो रअणु कुंभीलओ । सारं उज्झि कहिं १३७ वा महाई ओदरइ ? कहि कहिं ३८ तुए एशे मणिबंधणुक्किण्णणामहेए लाअकीए अंगुलीअए शमाशादिए ?
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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