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________________ ६४ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३/अप्रैल-सितम्बर २००७ कण्णआ गुणवदे कण्णआ६ पडिवादणिज्जे त्ति अअं दाव पढमो संकप्पो। पुत्तओ अदिघोरे क्खु पुत्तओ सेनावदिणा णिउत्तो। सच्चवदीसहिदो पुत्तओ८ मे आऊ महन्तो क्खु संवुत्तो। एसो पुत्तओ'९ अज्जाए सच्चवदीए हत्थे आप्पणा णिक्खितो। गरुअं जाणे अप्पडिआरगरुअ° वेअणं केत्तिअं कालं मअणो मं णइस्सदित्ति। गरुअं२१ पि विरहुदुक्खं आसाबंधो सहावेदि। पुत्तअं एसा खु केसरिणी तुमं लंघेदि जइ से पुत्तअं२२ ण मुंचेसि। मुहुत्तअं ता परिदेवइस्सं ताव वीसद्धं मुहुत्तअं२३ । एत्थ एव्व दाव मुहुत्त चिट्ठ। मुहुत्तों५ उवविसिअ परिस्समविणोदं करेदु अज्जो। हत्थअं इमं देवप्पसादस्सावदेसेण सुमणोगोविदं करिअ से हत्थअं२६ पावइस्सं। अंगुलीअअस्स उववण्णो खु अंगुलीअअस्स२७ आअमो। पुत्तअस्स मं वि किदविणअस्स पुत्तअस्स२८ लम्भजाणन्तरं सग्गारोहणेण अवसिद-कज्जां विप्पओअमुह महाराओ समत्थइस्सदि। दिट्ठिआ पिअसही पुत्तअस्स२९ जुवराअसिरी पेक्खिअ भत्तुणो अविरहेण वड्डदि। २. एत्तिअ (डेत्तिअ) प्रत्यय - प्राकृत में इदम्, किम्, यद्, तद् और एतद से परे अतु प्रत्यय को परिमाणार्थ में विकल्प से डित होने वाले एत्तिअ, एत्तिल, और एद्दह आदेश होते हैं तथा एतद् का लोप भी हो जाता है।३° कालिदास ने अपने नाटकों में प्राकृत के ऊपरलिखित परिमाणार्थक प्रत्ययों में से केवल एत्तिअ प्रत्यय का ही प्रयोग निम्नलिखित स्थलों पर किया है - एत्तिओ एत्तिओ३१ में मदिविहवो भवन्तं सेविदुं। एत्तिओ३२ मे मदिविहवो। एत्तिओ३३ बहजणस्स उवदेसो।
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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