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श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ अप्रैल-सितम्बर २००७
कालिदास के नाटकों में प्रयुक्त प्राकृत के तद्धित प्रत्यय
कौशल्या चौहान *
कालिदास ने अपने नाटकों में प्राकृत के दो प्रकार के तद्धित प्रत्ययों का प्रयोग किया है। प्रथम प्रकार के तद्धित प्रत्यय वे है जिनका उल्लेख संस्कृत के प्रसिद्ध व्याकरण अष्टाध्यायी में हुआ है। इन प्रत्ययों में से कालिदास के नाटकों में प्राकृत के अणू, आकिनच्, इतच् इनि, इष्ठन्, ख, खञ्, घ, छ, ठक्, ठञ्, ठन्, डतमच्, डतरच्, डामहच्, ढक्, ढञ्, तमप्, तरप्, तल्, तीय, थमु, थाल्दा, मतुप्, मयट्, यत्, ष्यञ्, र, ल, तथा विनि इत्यादि प्रत्ययों का प्रयोग हुआ है। कालिदास ने संस्कृत के इन तद्धित प्रत्ययों का प्रयोग प्राकृत के नियमानुसार वर्णलोप तथा वर्ण-परिवर्तन करके किया है। दूसरे प्रकार के तद्धित प्रत्यय वे हैं जिनका उल्लेख आचार्य हेमचन्द्र विरचित प्राकृत - व्याकरण में हुआ है। कालिदास ने अपने नाटकों में प्राकृत केक, एत्तिअ, केर, त्तण, त्थ, दो तथा हिं तद्धित प्रत्ययों का प्रयोग किया है। इनका उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से है -
१. क (अ) प्रत्यय प्राकृत में स्वार्थ में इल्ल, उल्ल, कर, डमया यम्', डालिअ', डिअम्', मया, रो, ल' तथा ल्लो' - इन तद्धित प्रत्ययों का प्रयोग होता है। कालिदास ने अपने नाटकों की प्राकृत में स्वार्थ में केवल क तद्धित प्रत्यय का ही प्रयोग किया है। क का लोप हो जाने पर उसकी अ मात्रा शेष रह जाती है। कालिदास के नाटकों में निम्नलिखित स्थलों पर प्राकृत के प्रत्यय का प्रयोग द्रष्टव्य है
अङ्गुलीअअं सहि, देवीए इदं सिप्पिसआसादो आणीदं णागमुद्दासणाहं अङ्गुलीअअं । ११
अहं वि एदं अङ्गुलीअअं २ देवीए उवणइस्सम् ।
१३
इदं सप्पमुद्दिअं अङ्गुलीअअं ।
ता इदो अहिण्णाणं अङ्गुलीअ १४ से विसज्जेम |
अङ्गारओ
जाव अङ्गारओ'५ रासि विअ अणुवङ्कं परिगमणं ण करेदि ।
* रीडर, संस्कृत-विभाग, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला- १७१००५