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________________ आप्तोपदेश: शब्द: की जयन्त भट्टीय व्याख्या : ५७ आवश्यक मानता है, वरन् इस मत में 'आप्तोपदेशः शब्दः' यह शब्द-प्रमाण का पूर्ण लक्षण है। ऐसे शब्द के द्वारा किसी वस्तु का उपदेश ही नहीं किया जा सकता जो न तो किसी कार्य का कारण हो, न शब्दान्तर का कारण से उक्त कोई प्रसंग आता है, तो उसके उच्चारण को उपदेश ही नहीं कह सकते। अत: शब्द-प्रमाण का लक्षण 'उपदेश' शब्द के ही निर्वचन पर आधृत है। उपदेश पद के निर्वचन द्वारा उक्त प्रसंगों की निवृत्ति हो जाती है। 'रथ्यापुरुष' आदि 'विपरीतार्थक' वचन होंगे और इसमें उक्त प्रसंग भी आप्तदित न होंगे, अत: विपरीत प्रतीति के कारणभूत 'रथ्यापुरूष' जैसे पदों के शब्द-प्रमाण से निरास के लिए सूत्रकार ने आप्तपद को ग्रहण किया है। विपर्यय ज्ञान के कारणभूत वाक्य कभी भी आप्तपुरुष के उपदेश नहीं हो सकते। शब्द-प्रमाण में ऐतिह्य प्रमाण के अन्तर्भाव के विषय में इनका मत है कि यदि कोई ऐतिह्य यथार्थ ज्ञान का कारण है तो उसका अन्तर्भाव शब्द में हो जायेगा, क्योंकि उपदेश वह होता ही है और आप्तोच्चारणन्तरत्व का अनुमान प्रमाण से ज्ञान हो जाता है। अत: ऐतिह्य प्रमाण के प्रमाणान्तरत्व की प्रसक्ति भी न होगी। इसलिए 'आप्तोपदेशः शब्दः' यही शब्द-प्रमाण का लक्षण होना चाहिए। उपदेश पद का सामान्य अर्थ कथन या अभिधान-क्रिया किया जाता है। फिर यह अभिधान-क्रिया क्या है? इस प्रश्न के उत्तर में जयन्त भट्ट ने पूर्वपक्ष की ओर से चार विकल्प प्रस्तुत करके सिद्धान्त में अभिधान-क्रिया के अर्थ का प्रकाशन किया है - १) यदि यह माने कि अभिधान-क्रिया वह साधन है, जिससे ज्ञान उत्पत्र होता है, तो चक्षुरादि भी प्रतीति के कारण है, अत: चक्षुरादि में भी उपदेशत्व के प्रसंग होंगे। २) यदि यह स्वीकार करें कि प्रतीति का वह कारण अभिधान-क्रिया शब्द है जो ज्ञात होता हुआ प्रतीति का कारण होता है, अतः शब्द ज्ञात होकर प्रतीति का कारण होने से अभिधान-क्रिया होगा, जबकि इन्द्रियाँ आज्ञयमान ही प्रतीति में कारण होती हैं, तो इसमें दोष आ जायेगा कि धूमादि जो ज्ञायमान है अनुमिति आदि का कारण होता है; उपेदशत्व से युक्त हो जायेगा। ३) यदि यह कहें कि अभिधान-क्रिया अपने सदृश प्रतीति का कारण होती है, क्योंकि धूमादि स्व-विसदृश वह्रि आदि का ज्ञान कराते हैं, जबकि शब्द में जिस विषय वाला बोध होता है, उसी विषय वाला शब्द होता है। इस पक्ष में यह दोष है कि बिम्ब अपने सदृश प्रतीति का हेतु होने से उपदेश हो जायेगा, क्योंकि पैर आदि का प्रतिबिम्ब बिम्ब सदृश होता है। दूसरी ओर शब्द स्वसदृश प्रत्यय का हेतु नहीं
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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