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श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ / अप्रैल-सितम्बर २००७
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भिन्नता अथवा रोग की भिन्नता के आधार पर भिन्न-भिन्न औषधि प्रदान करता है, यह बात धार्मिक-उपदेशों की भिन्नता पर भी लागू होती है, अतः सभी धर्मों में मैत्रीभाव के लिए एकता और अनेकता - दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं तथा किसी एक को भी हमें क्षति नहीं पहुँचाना चाहिए। जिस प्रकार एक बगीचे की सुन्दरता भिन्न-भिन्न प्रकार के फूलों, फलों एवं पौधों के कारण होती है, ठीक उसी प्रकार से धर्मरूपी बगीचे की सुन्दरता भी भिन्न-भिन्न विचारों, आदर्शों और साधनागत विविधताओं पर आधारित है। सभी धर्मों के प्रति समादर - भाव
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जैनाचार्यों के अनुसार सभी धर्मों एवं आस्थाओं के प्रति समादर - भाव ही धार्मिक सहिष्णुता और धर्मों के बीच मैत्री का आधार है। जैनाचार्य सिद्धसेन दिवाकर लिखते हैं कि 'जिस प्रकार बहुमूल्य रत्न जब तक एक सूत्र में आबद्ध नहीं होते, वे रत्नों के हार का निर्माण नहीं करते और न वे मानव के कण्ठाभरण बनकर शोभा को प्राप्त होते हैं । यही स्थिति विभिन्न धर्मों एवं विश्वासों की है। चाहे प्रत्येक धर्म की अपनी विशेषताएँ हों, किन्तु जब तक वे आपस में मैत्री के सूत्र में संगठित नहीं होते और एक-दूसरे के प्रति समादर का भाव नहीं रखते, तब तक वे मानवता के लिए मंगलप्रद नहीं हो सकते हैं। इसके विपरीत परस्पर एक-दूसरे के विरोध में खड़े होकर वे घृणा और संघर्ष को ही जन्म देते हैं और धर्म के नाम को भी सार्थक नहीं करते हैं। "
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एक बात हमें अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि यदि हम अन्य धर्मों या धार्मिक आस्थाओं को अपने धर्म की अपेक्षा हीन या मिथ्या समझते हैं, तो विभिन्न धर्मों के बीच सही अर्थों में सामंजस्य संभव नहीं होगा। हमें सभी धर्मों एवं धार्मिकआस्थाओं को समान रूप से आदर देना होगा। प्रत्येक धर्म एवं उसकी साधना-पद्धति का उद्भव एक विशेष सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में होता है और उसी परिप्रेक्ष्य में उसकी उपयोगिता का सम्यक् मूल्यांकन सम्भव होता है। जिस प्रकार से शरीर के विभिन्न अंग अपने-अपने निश्चित स्थान पर स्थित होकर कार्य करते हैं तथा शरीर में अपने स्थान और कार्य की अपेक्षा से प्रत्येक अंग की अपनी उपयोगिता होती है, वे सभी संगठित होकर एक अखण्ड शरीर के हित में ही कार्य करते हैं, यही बात विभिन्न धर्मो के सन्दर्भ में भी लागू होती है। सभी धर्मों का सामान्य लक्ष्य तो मानव-जीवन एवं मानव समाज में व्याप्त तनावों एवं संघर्षों का निराकरण कर पृथ्वी पर मानव जीवन को शांतिमय बनाना है। इस हेतु प्रत्येक धर्म को उसकी अपनी पृष्ठभूमि के अनुसार उसके अपने तरीके से काम करने के लिए आगे आना होगा। यदि कोई धर्म इस लक्ष्य-विशेष को हासिल करने के लिए काम करता है, तो ऐसे