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________________ २४ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३/अप्रैल-सितम्बर २००७ द्वादशांग or s सूत्रकृतांग m x ý w अपने स्वतंत्र विषय थे। अत: यह स्पष्ट है कि विषय-वस्तु विवेचन आदि की दृष्टि से अंग उपांगों से भिन्न है। 'नन्दीसूत्र' की चूर्णि में श्रुतपुरुष की कल्पना की गई है। पुरुष के शरीर में जिस प्रकार बारह अंग होते हैं, जैसे- दो पैर, दो जंघाएँ, दो उरु, दो गात्रार्थ (उदर, पीठ), दो भुजाएँ, गर्दन और सिर आदि, इसी प्रकार श्रुतपुरुष के भी बारह अंग हैं। इसको हम इस प्रकार समझ सकते हैंक्र.सं. अंग दाँया पैर आचारांग बाँया पैर दायीं जंघा स्थानांग बायीं जंघा समवायांग दायां उरु भगवती बायां उरु ज्ञाताधर्मकथा उदर उपासकदशा अन्तकृत्दशा दायीं भुजा अनुत्तरौपपातिक बायीं भुजा प्रश्नव्याकरण ११. गर्दन विपाक दृष्टिवाद श्रुतपुरुष की कल्पना आगमों के वर्गीकरण की दृष्टि से एक सुन्दर कल्पना है। आज भी प्राचीन ज्ञान भण्डारों में श्रुतपुरुष के हस्तरचित अनेक कल्पना चित्र प्राप्त होते हैं। द्वादशांग अंगों की रचना के पश्चात् श्रुतपुरुष के प्रत्येक अंग के साथ एकएक उपांग की भी कल्पना की गई, क्योंकि अंगों में कहे हुए अर्थों का स्पष्ट बोध उपांग सूत्रों के द्वारा ही होता है।१२ प्रत्येक अंगों के उपांग इस प्रकार हैं- आचारांग का उपांग औपपातिक है। इसी प्रकार सूत्रकृतांग का राजप्रश्नीय, स्थानांग का जीवाभिगम. समवायांग का प्रज्ञापना, भगवती का जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा का सूर्यप्रज्ञप्ति, उपासकदशा का चन्द्रप्रज्ञप्ति, अन्तकृत्दशा का निरयावलिया-कल्पिका, अनुत्तरौपपातिकदशा का कल्पावतंशिका, प्रश्नव्याकरण का पुष्पिका, विपाक का i j . a १२. सिर
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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