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निरयावलिया-कल्पिका : एक समीक्षात्मक अध्ययन : २५ पुष्पचूलिका और दृष्टिवाद का उपांग वृष्णिदशा है। उपांग का विषय-विश्लेषण, प्रस्तुतीकरण आदि की दृष्टि से अंग के साथ सम्बन्ध होना चाहिए, परन्तु इस प्रकार का कोई सम्बन्ध इनमें नहीं है। जहाँ तक इनकी रचना का प्रश्न है तो ऐसा लगता है कि जैन धर्म-दर्शन के गम्भीर अर्थ को समझने एवं समझाने के लिए ही उपांगों की रचना की गई होगी।
प्रस्तुत आलेख में उपांग साहित्य के आठवें उपांग निरयावलिया-कल्पिका का वर्णन किया गया है। निरयावलिया श्रुतस्कन्ध में पाँच उपांग समाहित किए गए हैं- कल्पिका, कल्पावतंशिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका और वृष्णिदशा। मनीषियों का यह मानना है कि पहले ये पाँचों निरयावलिया के ही नाम से जाने जाते थे परन्तु बाद में बारह अंगों के साथ बारह उपांगों के सम्बन्ध को स्थापित करने के लिए इन्हें पृथकपृथक् कर दिया गया। जिस आगम में नरक में जाने वाले जीवों का पंक्तिबद्ध वर्णन हो वह निरयावलिया है। (निरय+आवलि = नरक की आवलिका का जिसमें वर्णन हो)। इस आगम में एक श्रुतस्कन्ध, पाँच वर्ग, बावन अध्ययन (१०,१०,१०,१०,१२) तथा ११०० श्लोक प्रमाण मूलपाठ हैं। इसमें निरयावलिया के प्रथम वर्ग (कल्पिका) में दस अध्याय हैं, जिनमें काल, सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, रामकण्ह, पिउसेनकण्ह, महासेनकण्ह का वर्णन किया गया है। इसके साथ ही प्रथम अध्याय में कूणिक (अजातशत्रु) का जन्म, कूणिक का अपने पिता श्रेणिक (बिम्बसार) को जेल में डालकर स्वयं राजसिंहासन पर बैठना, श्रेणिक की आत्महत्या, कृणिक का अपने छोटे भाई वेहल्ल कुमार से सेचनक हाथी और हार को लौटाने के लिए अनुरोध तथा कूणिक और वैशाली के गणराजा चेटक के युद्ध का वर्णन है। ('दीघनिकाय' के महापरिनिव्वाणसुत्त में वज्जियों के विरुद्ध अजातशत्रु के युद्ध का वर्णन है।) इस उपांग से प्राचीन मगध के इतिहास की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसमें सम्राट श्रेणिक के राज्य का वर्णन किया गया है। सम्राट श्रेणिक का उल्लेख जैन एवं बौद्ध परम्पराओं में क्रमश: ‘श्रेणिक भिम्भसार' और श्रेणिक बिम्बिसार' के रूप मे मिलता है। जैन दृष्टि से श्रेणिक की स्थापना करने से उनका नाम श्रेणिक पड़ा।१३ बौद्ध दर्शन के अनुसार पिता के द्वारा अट्ठारह श्रेणियों का स्वामी बनाए जाने के कारण वे श्रेणी बिम्बिसार के रूप में प्रख्यात हुए। जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में श्रेणियों की संख्या अट्ठारह मानी गई है।१५ 'जम्बद्वीपप्रज्ञप्ति' में तो श्रेणियों के नौ नारुक और नौ कारुक - अट्ठरह भेदों का विस्तार से वर्णन किया गया है, जैसे- कम्भकार, पटेल- ग्रामप्रधान, सुवर्णकार, सूपकार, संगीतकार, नापित, चर्मकार, दर्जी, ग्वाले आदि। ‘महावस्तु' में श्रेणियों के तीस नाम मिलते हैं। ये नाम 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' में वर्णित नामों से मिलते-जुलते हैं। डॉ० आर०सी० मजुमदार ने