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१८ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३/अप्रैल-सितम्बर २००७
चिन्तकों ने किसी अमुक आसन को किसी तप विशेष हेतु आवंटित तो नहीं किया है, फिर भी यहाँ तपश्चर्या हेतु पर्यंकासन, वीरासन, वज्रासन, पद्मासन, भद्रासन, दण्डासन, उत्कटिकासन, गौदोहासन, कायोत्सर्ग आदि को तपश्चर्या हेतु अधिक उपयुक्त माना है।२९ तप, प्राणायाम और समाधान
प्राणायाम तपश्चर्या का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। प्राण का नियंत्रण प्राणायाम है। मन की चंचलता को दूर करने में प्राणायाम का योगदान अतुलनीय है। तपश्चर्या हेतु मन की एकाग्रता अनिवार्य है। वस्तुतः प्राण को जीवनाधार माना गया है। यह प्राणवायु के रूप में परिलक्षित होता है जिसे जीव आवश्यकतानुसार ग्रहण करता है और उसका निष्कासन भी करता रहता है। वायु के ग्रहण और निष्कासन की प्रक्रिया श्वसन-क्रिया है। इसी श्वसन-प्रक्रिया को नियंत्रित करना प्राणायाम कहलाता है। प्राणायाम प्राणवायु को विस्तारित करता है। यह तीन चरणों में पूर्ण होता है - पूरक, कुम्भक एवं रेचका पूरक - वायु का ग्रहण, कुम्भक - ग्रहीत वायु को रोकना और रेचक - भीतर की वायु को बाहर फेंकना है।३° प्राणायाम चित्त-संस्कारों को स्थिर बनाकर अविद्या आदि क्लेशों को नष्ट कर विवेकख्याति को प्राप्त कराने में सहायक माना गया है।३१ वैदिक मंतव्य में विवेकख्याति ही ज्ञान का चरमोत्कर्ष है और प्रकारान्तर से इसे ही तप का परम उत्स स्वीकार किया गया है। बौद्धमत में प्राणायाम 'आनापानस्मृति' के नाम से जाना जाता है। इसके अभ्यास से कर्मस्थान की भावना सिद्ध होती है जो तप का ही प्रतिरूप है। इसकी सहायता से बौद्ध धर्म के सिद्धपुरुष विशेष फल को प्राप्त करते हैं।३२ जैन चिंतन में प्राणायाम तपश्चर्या का एक प्रमुख साधन माना गया है। मन को संक्लेषित करने एवं शरीर को साधने वाला प्रमुख अंग प्राणायाम तपश्चर्या का आधार है।३३
विभिन्न परम्पराओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्राणायामों का उल्लेख किया गया है जो तपश्चर्या में सहायक माने जाते हैं। पतंजलि ने बाह्यवृत्तिक, आभ्यंतरवृत्तिक, स्तम्भवृत्तिक, बाह्यान्तर विषयापेक्षिक नामक चार प्रकार के प्राणायाम बताए हैं।२४ आचार्य घेरण्ड ने सहित, सूर्यभेदी, उज्जायी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्छा तथा केवली नामक आठ प्रकार के प्राणायाम का उल्लेख किया है।३५ बौद्ध परम्परा में प्राणायाम के स्पष्ट भेद का उल्लेख प्राय: नहीं हुआ है, परंतु आनापानस्मृति कर्मस्थान के रूप में प्राणायाम के विविध क्रिया-विधियों का विवेचन अवश्य उपलब्ध है। जैनमत में प्रत्याहार, शान्त, उत्तर एवं अधर नामक चार प्रकार के प्राणायाम बताए गए हैं।६ प्राणायाम के ये सभी प्रकार शरीर में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के वायु को नियंत्रित कर मन की चंचलता को नियंत्रित करते हैं। मन की चंचलता पर नियंत्रण