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________________ तप : साधन और समाधान : १७ त्याग से है जो विशिष्ट अवधि के लिए अथवा आजीवन आहार-त्याग से संबंधित है। अवमौदर्य (ऊनोदरी) भूख से कम आहार ग्रहण करना है। वस्तुओं के प्रति लालसा को कम करना वृत्तिपरिसंख्यान है। दूध, घी, मधु तथा इसी तरह के अन्यान्य रसों का त्याग करना रस-परित्याग है। साधनादि में बाधा उत्पन्न करने वाले कारणों के निवारणार्थ विविध तपों का अभ्यास विविक्तशय्यासन कहलाता है। शरीर को शीत, उष्ण एवं विविध आसनों के द्वारा कष्ट पहुँचाना कायक्लेश है। व्रत-नियम के भंग होने पर दोष-परिहार हेतु प्रायश्चित्त तप किया जाता है। अनुशासन, आत्मसंयम, नम्रता आदि सद्व्यवहार, विनय तप है। सेवाशुश्रूषा वैयावृत्य है। अध्ययन, मनन आदि स्वाध्याय है। त्याग करना व्युत्सर्ग है। चित्त की चंचल वृत्तियों पर रोक लगाना एवं मन को एक स्थान पर केन्द्रित करना ध्यान तप है। वस्तुत: जैन मत में विवेचित तप के विविध प्रकार संयम एवं भाव की मर्यादा को नियमित करने में सहायक होते हैं जो अशुभ कर्म को नष्ट करके मनुष्य को आत्मशुद्धि का पथ प्रदान करते हैं। तप, आसन और समाधान तपाराधना संकल्पशक्ति से निष्पन्न होती है। योगांगों में आसन वह सर्वश्रेष्ठ साधन है जहाँ से व्यावहारिक रूप में तप के अभ्यास का प्रारम्भ होता है। क्योंकि तपश्चर्या हेत साधक को किसी न किसी स्थिति में शरीर को साध कर रखना पड़ता हैं। आसन के संबंध में कहा गया है - सुखपूर्वक अधिकतम समय तक स्थिर होकर शरीर को साधना ही आसन है। २३ प्रणेताओं ने यह स्पष्ट किया है कि तप हेतु उसी आसन का चयन करना चाहिए जो स्थिर एवं सुखद हो। आसन, मन तथा शरीर दोनों को नियंत्रित करके आत्मा को शक्ति प्रदान करता है जिसे तप के लिए अनिवार्य माना गया है।२४ इसके बिना तप का अभ्यास अथवा प्रारम्भ शायद ही संभव हो। स्वामी स्वात्माराम ने आसन के संबंध में यह बताया है कि आसन न केवल शरीर को स्वस्थ रखता है, बल्कि यह शरीर के भारीपन को दूर कर उसे आलस्य-मुक्त रखता है।२५ बौद्ध चिन्तकों ने आसन को तपश्चर्या के लिए अनिवार्य माना है। जैनमत में तो आसन और तप के बीच एक अविभाज्य संबंध स्वीकार किया गया। यहाँ यह स्पष्ट किया गया है कि जिस आसन द्वारा मन स्थिर होता है उसी आसन का उपयोग तपाराधना के लिए उपयुक्त है।२६ आसनों के कई प्रकार हैं। मान्यता यह भी है कि संसार में जितने प्रकार के जीव हैं उतने ही प्रकार के आसन भी हैं। वैदिक परम्परा में यद्यपि यह स्पष्ट किया गया है कि 'स्थिर सुखमासनं' फिर भी तपश्चर्या हेतु पद्मासन, वीरासन, भद्रासन, दण्डासन, पर्यंकासन जैसे आसनों का नामेल्लेख किया गया है।२७ बौद्ध परम्परा में पद्मासन, बुद्धासन, सिद्धासन, वज्रासन आदि आसनों के प्रयोग का निर्देश है।८ जैन
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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