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________________ १३४ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३/अप्रैल-सितम्बर २००७ ८. गुजराती अनुवाद, भाग ५, सम्पा० मुनि दीपरत्नसागर जी, आगमदीप प्रकाशन संस्था, अहमदाबाद, (गु०) १९९७. निरयावलिकासूत्र निरयावलिका श्रुतस्कन्ध में पांच उपांग समाहित हैं- १. कल्पिका २. कल्पावतंसिका ३. पुष्पिका ४. पुष्पचूलिका ५. वृष्णिदशा। विद्वानों का मत है कि ये पांचो भाग निरयावलिका के ही रूप में समाहित थे। बाद में बारह अंगो का सम्बन्ध स्थापित करते समय उन्हें पृथक् किया गया। जिस भाग में नरक में जाने वाले पांच जीवों का पंक्तिबद्ध वर्णन हो वह निरयावलिका है। निरयावलिका में पांच वर्ग हैं। प्रथम वर्ग (कल्पिका) में दश अध्ययन हैंकाल, सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, वीरकण्ह, रामकण्ह, पिउसेनकण्ह, महासेनकण्ह। द्वितीय वर्ग में कल्पवतंसिका में दश अध्ययन हैं। इनके नाम इस प्रकार हैंपउम, महापउम, भद्द, सुभद्द, पउमभद्द, पउमसेन, पउम गुल्म, नलिनी गुल्म, आणंद और नंदन। तृतीय वर्ग पुष्पिका में दश अध्ययन हैं- चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिक, पूर्ण भद्र, मणिभद्र, दत्त, शिव, वलेपक और अनादृत। चतुर्थ वर्ग का नाम पुष्पचूला है। इस वर्ग में भी दश अध्ययन हैं जिनके नाम क्रमश: हैं- श्री देवी, ही देवी, घृति देवी, कीर्ति देवी, बुद्धि देवी, लक्ष्मी देवी , इला देवी, सुरा देवी, रस देवी और गन्ध देवी। पंचम वर्ग का नाम वृष्णिदशा है इसमें बारह अध्ययन हैं- निसध कुमार, मायनी कुमार, वहकुमार, वेधकुमार, सप्तधनु कुमार, दशधनु कुमार और शतधनु कुमार। इनके प्रकाशित संस्करण निम्न हैं - १. चन्द्रसूरिकृत वृत्ति सहित, आगमोदय समिति, सूरत सन् १९२२. २. चन्द्रसूरिकृत, बाबू धनपत सिंह का आगम संग्रह, मुर्सिदाबाद, १८८५. ३. प्रस्तावना के साथ P.L Vaidya, Poona, 1932; A.S. Gopani and V.J. Chokshi, Ahmedabad. 1943.
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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