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________________ प्रकाशित उपांग साहित्य : १३३ आगमसुत्ताणि, भाग १०, मूल, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, सम्पा०- मुनि दीपरत्नसागर, आगमश्रुत प्रकाशन, खानपुर, अहमदाबाद। १०. आगमसुधा-सिन्धु, भाग ७, जिनेन्द्र विजयगणि, हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, लाखावावल - १९७८. ९. जम्बूद्वी प्रज्ञप्तिसूत्र जम्बूद्वी प्रज्ञप्ति को कहीं पांचवां तो कहीं छठा उपांग माना गया है। इस ग्रन्थ में केवल एक अध्ययन तथा सात वक्षस्कार हैं। इसमें मूलपाठ के ४१४६ श्लोक हैं, १७८ गद्यसूत्र और ५२ पद्यसूत्र है। इस ग्रंथ में भारतवर्ष तथा राजा भरत का वर्णन है। यह ग्रन्थ ‘ज्ञाताधर्मकथा' का उपांग माना जाता है। गौतम इन्द्रभूति और महावीर के प्रश्नोत्तर के रूप में इसकी व्याख्या की गयी है। इस ग्रन्थ पर मलयगिरि ने टीका लिखी थी लेकिन वह कालदोष से नष्ट हो गयी। उसके बाद बादशाह अकबर के गुरु हीरविजयसूरि के शिष्य शान्तिचन्द्र वाचक ने अपने गुरु की आज्ञा से 'प्रमेयरत्नमंजूषा ' नाम की टीका लिखी। यह ग्रन्थ पूर्वार्द्ध तथा उत्तरार्ध दो भागों में प्रकाशित हुआ। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के प्रकाशित संस्करण निम्न हैं १. ३. ५. शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति सहित, देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड, बम्बई, सन् १९१०. ४. हिन्दी - गुजराती अनुवाद- मुनि घासीलालजी जैन शास्त्रोद्धार समिति राजकोट १९१७. धनपति सिंह, कलकत्ता १८८५. हिन्दी अनुवाद - अमोलक ऋषि, हैदराबाद, १९२०. ७. , उवंगसुत्ताणि, भाग-४, सम्पा० आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती, लाडनूं १९८९. ६. हिन्दी अनुवाद - मुनि मिश्रीमल जी मधुकर, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर, राजस्थान, १९८६. आगमसुत्ताणि, भाग १८, सम्पा० मुनि दीपरत्नसागर जी आगमदीप प्रकाशन संस्था, अहमदाबाद, १९९५.
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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