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________________ १३० : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३/अप्रैल-सितम्बर २००७ इसमें ९ प्रकरण और २७२ सूत्र हैं। तीसरा प्रकरण सब प्रकरणों से बड़ा है जिसमें देव, द्वीप और सागर का वर्णन है। मलयगिरि के अनुसार यह ग्रन्थ 'स्थानांग' का उपांग माना जाता है। इसके निम्न प्रकाशित संस्करण हैं - १. मलयगिरिवृत्ति, देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड, बम्बई, सन् १९१९. २. हिन्दी अनुवाद- अमोलकऋषि, हैदराबाद, वी०सं० २४४५. ३. मलयगिरिवृत्ति एवं गुजराती अनुवाद, अनुवादक- धनपति सिंह, अहमदाबाद, (मुर्सिदाबाद), सन्-१८८३. उवंगसुत्ताणि, खण्ड १, मूलपाठ एवं पाठान्तर तथा शब्द-सूची, सम्पा०- युवाचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती संस्थान लाडन, (राज०) ई० सन् १९८७. आगमदीप, भाग-४, गुजराती अनुवाद, अनुवादक- मुनि दीपरत्नसागर, आगमदीप प्रकाशन, अहमदाबाद, ई. सन्. १९९५. आगमसुत्ताणि, मूलपाठ, भाग १४, सम्पा० - मुनि दीपरत्नसागर जी, आगमश्रुत प्रकाशन अहमदाबाद, ई० सन् १९९५. आगमसुत्ताणि, भाग-९, सम्पा०- मुनि दीपरत्नसागर जी, आगमश्रुत प्रकाशन अहमदाबाद, ई० सन् २०००. ८. हिन्दी व्याख्या सहित, सम्पा०-मुनि मिश्रीमल जी मधुकर, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर, (राज.) हिन्दी अनुवाद- लाला सुखदेव सहाय ज्वाला प्रसाद जौहरी, हैदराबाद१९२०. हिन्दी-गुजराती अनुवाद (तीन भाग), अनुवादक- मुनि घासीलाल जी, जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट १९७१-१९७५. ११. आगमसुधा-सिन्धु, भाग ५, जिनेन्द्र विजयगणि, हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, लाखावावल, १९७७. प्रज्ञापनासूत्र प्रज्ञापना जैन आगमों का चौथा उपांग है। इसमें ३४९ सूत्रों में निम्नलिखित ३६ पदों का प्रतिपादन है- प्रज्ञापना, स्थान बहुवक्तव्य, स्थिति, विशेष, व्युत्क्रान्ति,
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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