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________________ प्रकाशित उपांग साहित्य : १२९ अभिन्न मानता है और केशीकुमार उसके मत का खण्डन करते हुए जीव के स्वतंत्र अस्तित्व हेतु प्रमाण उपस्थित करते हैं। इसके प्रकाशित संस्करण निम्न हैं१. मलयगिरि टीका, धनपति सिंह, कलकत्ता, सन् १८८०. आगमोदय प्रकाशन समिति बम्बई, १९२५.। गुर्जर ग्रन्थरत्न कार्यालय, अहमदाबाद, वि. सं. १९९४. २. हिन्दी अनुवाद, अनुवादक- अमोलक ऋषि, हैदराबाद, वी. सं. २४४५. ३. संस्कृत व्याख्या एवं गुजराती अनुवाद, अनुवादक- मुनि घासीलाल, जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट, ई० सन् १९६५. ४. अ. गुजराती अनुवाद बेचरदास जीवराज दोशी, लाघाजी स्वामी पुस्तकालय, लिम्बड़ी, ई० सन् १९३५. ब. गुर्जर ग्रन्थ कार्यालय, अहमदाबाद, वि०सं० १९९४. उवंगसुत्ताणि मूलपाठ, पाठान्तर सहित तथा अन्त में शब्द-सूची, सम्पा०-युवाचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं, (राज.) १९८७. आगमदीप, भाग ३, गुजराती अनुवाद, अनुवादक- मुनि दीपरत्नसागर, आगमदीप प्रकाशन अहमदाबाद, १९९७. ७. आगमसुत्ताणि, भाग १३, मूलपाठ- मुनि दीपरत्न सागर, आगमदीप प्रकाशन, अहमदाबाद, १९९५. आगमसुत्ताणि सटीक, भाग ८, मूल, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, सम्पा० - मुनि दीपरत्नसागर जी, आगमश्रुत प्रकाशन, अहमदाबाद, ई० सन् २०००. ९. हिन्दी व्याख्या, सम्पा० -मुनि मिश्रीमल जी मधुकर, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर (राज.) ई० सन् १९८७. जीवाजीवाभिगमसूत्र यह ग्रंथ जैन आगम का तीसरा उपांग है। इसमें महावीर द्वारा गौतम गणधर के प्रश्नों के उत्तर के रूप में जीव और अजीव के भेद-प्रभेदों का विस्तृत वर्णन है।
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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