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________________ १२८ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३/अप्रैल-सितम्बर २००७ ५. हिन्दी अनुवाद, अनुवादक- अमोलकऋषि जी, हैदराबाद, वीर २४४६. ६. मूल, छोटेलालमणि, जीवन कार्यालय, अजमेर, १९३६. ७. मूल, हिन्दी अनुवाद, संस्कृति रक्षक संघ, सैलाना। हिन्दी व्याख्या सहित, सम्पा०-मुनि मिश्रीमल जी मधुकर, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर, राज० १९८७. ९. हिन्दी अनुवाद, अनुवादक- मुनि उमेशचन्द, सैलाना, १९६४. १०. मूल, गुजराती अनुवाद, अनुवादक- मुनि दीपरत्नसागर जी, आगमदीप प्रकाशन, अहमदाबाद, सन् १९९७. ११. आगमसुत्ताणि (मूल), मुनि द्वीपरत्नसागर, आगमश्रुत प्रकाशन, अहमदाबाद, सन् १९९५. १२. आगमसुत्ताणि, मूल, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी, वृत्ति, मुनिदीपरत्नसागर, आगमश्रुत प्रकाशन, अहमदाबाद, सन् २०००. १३. उवंगसुत्ताणि, खण्ड १, सम्पा०-आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं (राज.), ई० सन् १९९७. १४. आगमसुधा-सिन्धु भाग-५, सम्पा०-जिनेन्द्र विजयगणि, हर्षपुष्पामृत जैन टेक्स्ट सोसाइटी, लाखावावल, ई० सन् १९७७. १५. सम्पा०-रतनलाल दोसी, ए० वी० साधुसंघ, सैलाना। १६. अंग्रेजी अनुवाद- के० सी० लालवानी, सम्पा०-गणेश लालवानी, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर; जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर, ई० सन् १९८८. राजप्रश्नीयसूत्र राजप्रश्नीय जैन आगमों का दूसरा महत्त्वपूर्ण उपांग है। इसमें कुल २१७ सूत्र हैं। प्रथम भाग में सूर्याभदेव महावीर के सामने उपस्थित होकर नृत्य करता है और अनेक प्रकार का नाटक करता है, इसमें उसके विमान का विस्तृत विवेचन किया गया है। दूसरे भाग में पार्श्वनाथ के प्रमुख शिष्य केशीकुमार और श्रावस्ती के राजा प्रदेशी के मध्य जीव-अजीव विषय में संवाद है। राजा प्रदेशी जीव और शरीर को
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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