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________________ जैन दार्शनिक चिन्तन का ऐतिहासिक विकास-क्रम : ११७ जैन दर्शन में तत्त्वमीमांसीय एवं ज्ञानमीमांसीय अवधारणाओं का अत्यंत सूक्ष्म विवेचन हुआ है एवं तदनुसार उस पर विराट दार्शनिक साहित्य का सृजन भी हुआ है। साहित्य की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध जैन दर्शन का सम्पूर्ण तत्त्वज्ञान आगम तथा आगमेतर साहित्य में उपलब्ध है । आगमों में निबद्ध गूढ़ दार्शनिक मान्यताओं के प्रकटीकरण में आगमेतर दार्शनिक साहित्य का विशिष्ट अवदान है। कालक्रम के आधार पर जैन दर्शन के विकास की निम्न अवस्थाएं मिलती हैं - (१) आगमिक युग - भगवान महावीर के निर्वाण से लेकर करीब एक हजार वर्ष का अर्थात् विक्रम की पाँचवीं शताब्दी तक । (२) अनेकान्त स्थापना युग - विक्रम की पाँचवीं शताब्दी से आठवीं शताब्दी तक । (३) दार्शनिक समीक्षा युग - विक्रम की आठवीं से सत्रहवीं शताब्दी तक। (४) नवीन न्याय युग - विक्रम की सत्रहवीं से आधुनिक समय पर्यन्त । आगमिक युग : भगवान महावीर के उपदेशों का संग्रह उनके साक्षात् शिष्य अर्थात् गणधरों ने अंगों के रूप में किया। उन्हीं के आधार पर अन्य स्थविरों ने शिष्यों के हितार्थ जो साहित्य अपनी शैली में ग्रथित किये वे उपांग, प्रकीर्णक, छेद और मूलसूत्र के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका अंतिम संस्करण वलभी में वीरनिर्वाण के ९८० वर्ष बाद, मतान्तर से ९९३ वर्ष के बाद हुआ। आगम युग की काल मर्यादा महावीर के परिनिर्वाण अर्थात् वि०पू० ५२७ से प्रारंभ होकर प्रायः एक हजार वर्ष तक जाती है। भगवान महावीर द्वारा अर्थ रूप में भाषित आगम के कालक्रम के अनुसार दो विभाग हो गए। भगवान के उपदेश के अर्थागम और उसके आधार पर की गयी सूत्र रचना को सूत्रागम कहा गया । इसका अपरनाम गणिपिटक भी है। आगम रूप . संकलन के मुख्य बारह विभाग थे, अतः वे द्वादशांगी के नाम से विख्यात हुए। बारह अंग निम्न हैं (१) आचारांग, (२) सूत्रकृतांग, (३) स्थानांग, (४) समवायांग, (५) भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति (६) ज्ञाताधर्मकथा, (७) उपासकदशा, (८) अन्तकृत् दशा, (१०) प्रश्नव्याकरण, (११) विपाकश्रुत, (१२) दृष्टिवाद | आगमिक साहित्य को रचना की दृष्टि से दो भागों में बाँटा गया है(१) अंग प्रविष्ट एवं (२) अनंग प्रविष्ट या अंगबाह्य
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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