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________________ श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ अप्रैल-सितम्बर २००७ जैन दार्शनिक चिन्तन का ऐतिहासिक विकास-क्रम डॉ. किरन श्रीवास्तव भारतीय दर्शनों में जैन दर्शन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत के सभी दर्शनों का मुख्य ध्येय दु:खों से आत्यन्तिक निवृत्ति है। यह संसार अनादि-अनन्त है, इसमें संयोग-वियोगजन्य सुख-दुःख की अविरल धारा बह रही हैं। इसमें निमज्जन करतेकरते जब प्राणी थक जाता है तब वह शाश्वत आनन्द की खोज में निकलता है। वहाँ जो ध्येय और उपादेय की मीमांसा बनती है, वह दर्शन बन जाता है। दर्शन का मान्य अर्थ तत्त्व का साक्षात्कार या उपलब्धि है। भारत में दो प्रकार की दार्शनिक परम्पराएं अनादि काल से विकसित रही हैंवैदिक परम्परा और श्रमण परम्परा। वैदिक परम्परा में षड्दर्शन- न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, और वेदान्त हैं। जबकि श्रमण परम्परा के अन्तर्गत जैन और बौद्ध दर्शन आते हैं। जैन संस्कृति जो अब भारत में श्रमण धारा का प्रतिनिधित्व कर रही है, अपने निषेधात्मक रूप में अवैदिक है। वास्तव में भारतीय संस्कृति एक मिली-जुली संस्कृति है जिसके विकास में इन दोनों धाराओं- ब्राह्मण और श्रमण ने अपना-अपना योगदान दिया है, दोनों धाराओं में बहुत-सी समानताएं होते हुए असमानताएं भी हैं। किन्तु यह भी असत्य नहीं है कि दोनों की अपनी-अपनी विशेषताएं और विभिन्नताएं हैं। सामान्य रूप से यह विश्वास किया जाता है कि श्रमण परम्परा का उद्भव और विकास वैदिक विचारधारा की रूढिवादिता के विरोध में हुआ है किन्तु यह सत्य नहीं है, क्योंकि श्रमणधारा के दोनों दर्शनों का उद्भव किसी के विरोध में न होकर स्वतःस्फूर्त है। इन दोनों दर्शनों के प्रवर्तक भारत भूमि में जन्मे दो महान व्यक्तित्व हैं- महावीर और गौतम बुद्ध, जिन्होंने मानवीय समस्याओं की आत्यन्तिक निवृत्ति का लक्ष्य सामने रखकर भिन्न-भिन्न जीवन पद्धतियों को जन्म दिया। इन पद्धतियों के हृदयग्राही रूप ने सामान्य जन-जीवन को प्रभावित किया। जिसके कारण कुछ ही समय में असंख्य लोग इसके अनुयायी बन गये। मनुष्य के लिए मनुष्यों द्वारा प्रतिपादित इन चिन्तन धाराओं का निरन्तर प्रवाहित होते रहना इस बात का प्रबल प्रमाण है कि इसमें मानव हित की अपूर्व शक्ति विद्यमान है। * पूर्व शोधछात्रा- पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी
SR No.525061
Book TitleSramana 2007 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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