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________________ ३६ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ शक, बर्बर आदि प्राचीन और अर्वाचीन म्लेच्छों के आक्रमणों के संकट सबको समान थे। वैदिकों के जो परशत्रु, वही जैनों के; जो जैनों के, वही सिखों के। उन सामयिक शत्रुओं से और परकीय आक्रमणकारियों से जिन गंभीर युद्धों को कर उनको हरा दिया, वे राष्ट्रीय महायुद्ध भी हमने एक हिंदू-ध्वजा के नीचे ही किये और आगे भी करेंगे। उपसंहार- परन्तु महामंत्र के सदृश 'हिन्दू' शब्द का बिल्कुल दुरुपयोग और दुराचार नहीं हो इसके लिए हम सबको प्रयत्न करना चाहिए। 'हिन्दू' शब्द का आज तक हर एक के द्वारा अपनी इच्छा के अनुसार अर्थ लेकर दुरुपयोग करने के कारण ही वैदिक, जैन, सिक्ख, आदि में अनावश्यक मनोमालिन्य उत्पन्न हुआ। इस आपत्ति से दूर रहने के लिए जिन दो बातों को करना चाहिए वे निम्न प्रकार हैं (१) हिन्दुत्व की व्याख्या सरकार द्वारा लिखा लेनी चाहिए। 'व्याख्या' का अर्थ है 'अखण्ड में खंड करना।' त्रिकोण, चौकोन की गणितीय व्याख्या की सीमा भी शंकाकुल होती है। फिर समाज की या धर्म की कोई भी व्याख्या अपने सीमाप्रदेश में कुछ अंश में विवादास्पद रहेगी ही। लेकिन अन्य व्याख्याओं में से अधिक सर्वसंग्राहक और किसी भी धर्म स्वातंत्र्य में या धर्मतत्त्व में बाधा उपस्थित न करते हुए केवल ऐहिक प्रत्यक्षावगम्य और ऐतिहासिक लक्षणों पर आधारित हिन्दुत्व की उपरोक्त “आसिंधुसिंध-पर्यन्ता'' यह व्याख्या हम सबको याद रखनी चाहिए और सरकार द्वारा लिखा लेनी चाहिए; इससे सरकार को भी 'हिन्दू' कौन- यह निश्चित करने में स्वच्छन्दता नहीं रहेगी और आगामी जनगणना में जिसकी-जिसकी यह भारतभूमि, पितृभूमि एवं पुण्यभूमि है, वह 'हिन्दू' इस व्याख्या के अनुसार भारतीय- वैदिक, जैन, आर्य, सिक्ख, लिंगायत, बौद्ध प्रभृति और हिन्दू भाई आदि को धर्म स्वतन्त्र कहकर भी हिन्दू लिखने के लिए सरकार को मजबूर किया जा सकेगा। हर एक को अपना धर्म ऐसा कहना चाहिए- वैदिक हिन्दू, सिख हिन्दू, बौद्ध हिन्दू, लिंगायत हिन्दू आदि। इससे अपना वैदिक या जैन या बौद्ध धर्म स्वतंत्र रखाने में किसी भी प्रकार की पाबंदी नहीं रहेगी, और हिन्दूराष्ट्र में से पृथक् जाने का भी राष्ट्रघातक, संस्कृतिघातक या फिर आत्मघातक कृत्य करने की नौबत नहीं आयेगी। (२) 'हिन्दू' शब्द उपयोग में लाना सीखिए। 'हिन्दू' शब्द यह एक 'सनातन' धर्म किं वा 'वैदिक' धर्म के अनुयायियों को ही लगाने की आदत छोड़नी चाहिए। 'वैदिक और जैन' ऐसा कहना चाहिए, 'हिन्दू और जैन' ऐसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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