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________________ जैन 'हिन्दू' ही हैं, लेकिन किस अर्थ में? : ३५ । क्या कम हुए हैं? दिगम्बर और श्वेताम्बर, ‘यह जैन राजकुल' और 'वह जैन राजकुल', यह जैन जाति श्रेष्ठ या वह? इस प्रकार के झगड़े हो रहे हैं; इसलिए क्या दिगम्बर जैन प्रतिपक्षी श्वेताम्बर जैन से झगड़ते हैं, अत: हम जैन नहीं हैं- ऐसा कहेंगे? झगड़ों के विषय में कहें, तो हमारे हिन्दू राष्ट्र के वैदिक, बौद्ध, जैन, सिक्ख, लिंगायत, आर्य, ब्रह्मसमाजी, सनातनी, सुधारक प्रभृति उपांगों के झगड़े संसार के किसी भी अन्य धर्मों के आपस के झगड़ों से तुलनात्मक दृष्टि से, सौम्य, कम और अपवादमय हैं- यह इतिहास मुक्तकंठ से उद्घोषित करता है। मुसलमानों में सुन्नी की शियों ने, खलीफों की खलीफों ने, बहाइयों की बिन-बहाईयों के द्वारा की गई कत्लें, दिए हुए शाप-प्रतिशाप, पीढ़ी दर पीढ़ी किये गये छल एवं द्वेष देखिए। लेकिन सुन्नी या शिया, या बहाई कोई भी 'अपना प्रतिपक्षी मुसलमान है, अत: मैं मुसलमान नहीं'- ऐसा कहता है? ईसाइयों में केवल 'तुम प्रोटेस्टेंट, मैं कैथोलिक' इस प्रश्न पर ही सिर कटते थे। एक समय पोप ने इसीलिए प्रोटेस्टेंट पंथ के संपूर्ण नीदरलैंड को प्राणान्त की सजा दे दी। पचास-पचास लाख लोगों की एक साथ 'प्रोटेस्टेंट' इस एक नाम से कहकर शिरच्छेद की सजा दे दी। लेकिन क्या प्रोटेस्टेंट या कैथोलिकों ने 'वह ईसाई है, इसलिए हम ईसाई नहीं' ऐसा कहा है? भारत में भी भाईभाई में युद्ध होते थे, इसलिए क्या 'उस सहोदर भाई के माँ-बाप मेरे माँ-बाप नहीं हैं'- ऐसा दूसरा भाई कहेगा? ये सारे आक्षेप 'हिन्दू' शब्द को 'वैदिक' या 'सनातनी' इस एक ही उपांग में लगाने की भूल से हुए हैं। यह भूल सुधार ली जाये, तो ये आक्षेप मूल में ही कैसे निरर्थक हैं- यह उपरोक्त दिग्दर्शक चर्चा से हमारे जैन भाईयों को ही नहीं; वरन् वैदिक, लिंगायत, बुद्ध, सिक्ख प्रभृति सभी धर्मियों की समझ में आ जाएगा- ऐसी हमें आशा है। हम सगे जाति-भाई हैं- हम सब की पितृभूमि यही भारतमाता है। हम सबकी पितृभाषा एवं मातृभाषा और धर्मभाषा भी यही एक संस्कृत या प्राकृत है। हमारे सब धर्मसंस्थापक, ईशप्रेषित अवतार और आचार्य वशिष्ठ, व्यास, बुद्ध, महावीर, शंकर, दयानन्द, हमारे इस हिन्दू जाति के सामयिक पूर्वज हैं। प्राचीन काल में हम सबके सामयिक पूर्वजों में आर्यों में ही नहीं, किन्तु आर्यअनार्य नागादि कुल में भी जब अनुलोम-प्रतिलोम विवाह सतत हुए थे, और आज भी सिक्ख और वैदिक, वैदिक और जैन, जैन और आर्यों में शिष्टाचार से विवाह होते हैं; तब से हम सब एक ही रक्तबीज के सगे जात-भाई हैं। एकजाति, एकजीवी हैं। हमारा इतिहास वैदिककाल से सामयिक है। यवन, हूण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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