________________
३४ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३-४ / जुलाई-दिसम्बर २००६ है; तथापि अत्यन्त विशाल, विविधार्थक एवं बहुसंग्राहक शब्द का निचूक अर्थ - निश्चित कर उसकी सुनिश्चित व्याख्या करने का प्रयत्न करना कठिन था। पूर्वाचार्यों ने दिशा भूल से अनेक व्याख्या करके उस शब्द को तोड़-मरोड़कर उसको निश्चित अर्थवाला बनाने का प्रयत्न किया और तभी 'हिन्दू' शब्द की स्पष्ट बहुतांशी निर्णायक व्याख्या प्राप्त हुई। अब इस व्याख्या के अनुसार 'वैदिक' या 'सनातनी' बंधु ही केवल 'हिन्दू' नहीं, यह सिद्ध हुआ है; तब सबको गत-भूलों को छोड़कर इस पितृपूज्य हिन्दुत्व की ध्वजा के नीचे इकट्ठा होना उचित है। 'श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त ही केवल हिन्दू हैं' इस गलत व्याख्या के कारण तथा 'हिन्दू' शब्द 'परकीय' है- इस भ्रम के कारण ही एक बार वैदिक धर्म के कट्टर अभिमानी आर्यसमाजी भाइयों ने भी 'हिन्दू' शब्द स्वीकार नहीं किया था परन्तु इस व्याख्या के कारण एवं वह शब्द वैदिक शब्दोत्पन्न नहीं है- इस संशोधन के कारण वह शब्द आर्यसमाजियों के द्वारा स्वीकृत हुआ है। उसी प्रकार इस व्याख्या के अनुसार हमारे जैन भाइयों को भी उस अर्थ की अपेक्षा उस शब्द को अंगीकार करना चाहिए।
कुछ फुटकर आक्षेप- इससे 'जैन धर्म' वैदिक धर्म की शाखा न होकर वह एक स्वतन्त्र धर्म है; अत: जैन वैदिक नहीं है' केवल यही सिद्ध होता है। 'हिन्दू' शब्द का इस आक्षेप से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस उपरोक्त कथन से 'हिन्दू' कह लेने में जो जैन भाइयों का आक्षेप है, उसका जिस तरह समाधान हो सकता है; उसी तरह शेष फुटकर आक्षेपों का भी समाधान हो सकता है। उदाहरणार्थ उनका यह आक्षेप है कि 'प्राचीन इतिहास में जैन और हिन्दुओं के बीच में झगड़े हुए हैं, अत: जैन अपने को हिन्दू कैसे कहेंगे?' इस आक्षेप में भी 'हिन्दू' शब्द को 'वैदिक' अर्थ के उपयोग में लाने की भूल है। उस आक्षेप को इस तरह कहना चाहिए- “जैन और वैदिकों के बीच पीछे और आज झगड़े होते हैं, अत: 'जैन' अपने को 'वैदिक' कैसे कहेंगे?" हिन्द शब्द के उपरोक्त मूल एवं निश्चित अर्थ में प्रयुक्त उस शब्द पर यह आक्षेप नहीं लगता है। फिर हमको यह सोचना चाहिए कि धार्मिक झगड़े धर्मतत्त्व नहीं होते हैं। यदि उनको धर्मतत्त्व मानने लगें, तो कोई भी धर्म या पंथ अखंड नहीं हो सकता। वैदिक
और जैनों में जिस तरह झगड़े हुए हैं; उसी तरह वैदिकों में भी झगड़े हुए हैं। 'शैव' और 'वैष्णवों' के, 'सनातनी' और 'आर्यसमाजियों' के झगड़े हुए हैं। तुकाराम का छल मंबाजी बुवा ने किया, इसलिए क्या उनमें से किसी ने “हमारे प्रतिपक्षी वैदिक हैं, अत: मैं वैदिक नहीं हूँ"- ऐसा कहा है? जैनों में भी झगड़े
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org