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________________ १५४ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक ३ - ४ / जुलाई - दिसम्बर २००६ लाती, किन्तु स्मृति को स्व एवं अर्थ का प्रकाशक होने से, अर्थक्रिया में प्रवर्तक होने से, अविसंवादक व्यवहार का कारण होने से तथा व्यवसायात्मक ज्ञानरूप होने से प्रमाण माना जा सकता है । यद्यपि अकलङ्क, विद्यानन्द, प्रभाचन्द्र आदि दिगम्बर जैन दार्शनिकों ने काल-भेद से स्मृति को कथञ्चित् अपूर्व अर्थ का ग्राही प्रतिपादित किया है किन्तु वादिदेवसूरि, हेमचन्द्र आदि श्वेताम्बर जैन दार्शनिक स्मृति को गृहीतग्राही होने पर भी उसे प्रमाण स्वीकार करते हैं। वस्तुतः स्मृति का प्रामाण्य प्रत्यक्ष द्वारा गृहीत अर्थ का तथाभूत ज्ञान कराने में ही उचित प्रतीत होता है, नवीन या अपूर्व अर्थांश के ज्ञान की दृष्टि से स्मृति को प्रमाण मानना हमारे दैनिक व्यवहार में भी अव्यवस्था उत्पन्न कर सकता है। स्मृति ज्ञान में अविसंवादकता भी तभी घटित हो सकती है, जब वह प्रत्यक्ष आदि अन्य प्रमाणों द्वारा ज्ञात अर्थ का तथाभूत ज्ञान करा सके । संदर्भ सूची १. प्रमाणमीमांसा, हेमचन्द्र, विशदः प्रत्यक्षम् । १.१३६१ २. प्रमाणमीमांसा, हेमचन्द्र, अविशदः परोक्षम् । १.२.१ ३. प्रमाणमीमांसा, हेमचन्द्र - स्मृतिप्रत्यभिज्ञानोहानुमानागमस्तद्विवधयः । १.२.२ । ४. तत्त्वार्थसूत्र, उमास्वाति, १.१३ मतिः स्मृतिः संज्ञा, चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् । ५. लघीयस्त्रयवृत्ति - अकलंक पृ० ५ ६. ७. ८. स्मृतिः संज्ञायाः प्रत्यवमर्शस्य (प्रत्यभिज्ञानस्य ) संज्ञा चिन्तयाः तर्कस्य । चिन्ता अभिनिबोधस्य अनुमानादः । । ११. · प्रमाणपरीक्षा, विद्यानन्द, पृ० ४२ तदित्याकारानुभूतार्थविषयां स्मृतिः । परीक्षामुख - माणिक्यनन्दी, ३.३ 'संस्काराद्बोधनिबन्धाना तदित्याकारा स्मृति । " ६. वैशेषिकसूत्र - कणाद, ६.२.६ प्रमाणमीमांसा, हेमचन्द्र १.२.३ वासनोद्ववोधहेतुका तदित्याकारा स्मृतिः । आत्मनः संयोग विशेषात् संस्काराच्च स्मृतिः । १०. योगसूत्र, पतञ्जलि - १.६.११ प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः । अनुभूतविषया सम्प्रमोषः स्मृति । न्यायसूत्र, गौतम - ३.२.४० स्मरणं त्वात्मनो ज्ञस्वामान्यात् । १२. ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य- २.२.२५ १३. प्रमाणमीमांसा, भाषा टिप्पणी, पं० सुखलाल जी संघवी, पृ० ७३ १४. प्रमाणसमुच्चयवृत्ति, दिङ्नाग, पृ० ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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