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________________ स्मृति प्रमाण (प्रमाणमीमांसा के संदर्भ में एक समीक्षात्मक अध्ययन) : १५५ "यदि सर्वेषां ज्ञाननां प्रमाणत्वमिष्यते प्रमाणानवस्था प्रसज्यते।" सिद्धिविनिश्चयवृत्ति, अकलंक , १.६, पृ० ३८ "न हि तयाऽर्थ परिच्छिद्य अर्थक्रियायां विसंवाद्यते।" १६. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, विद्यानन्द, १.१३.६ से ११ स्मृते प्रमाणताऽपाये संज्ञायाः न प्रमाणता। तद्प्रमाणतायां तु चिन्ता न व्यवष्ठिते।। तद् प्रतिष्ठितौ क्वानुमाननाम प्रवर्तते। तद्प्रवर्तनेऽध्यक्षप्रमाण्यं नावतिष्ठते ।। ततः प्रमाण शून्यत्वात्प्रमेयस्यापि शून्यता ।।" १७. प्रमाणमीमांसा, हेमचन्द्र, पृ० ७७ १८. प्रमाणमीमांसा, आचार्य हेमचन्द्र, १.२.३ की वृत्ति, पृ० ७७ . १६. प्रमाणमीमांसा, आचार्य हेमचन्द्र, १.२.४ ग्रहीष्यमाणग्रहिण इव गृहीतग्राहिणोऽपिनाऽप्रामाण्यम् । २०. प्रमाणमीमांसा, आचार्य हेमचन्द्र, पृ० ३४ २१. प्रमाणमीमांसा, आचार्य हेमचन्द्र, पृ० ३३ २२. प्रमाणमीमांसा, आचार्य हेमचन्द्र, पृ० ३४ २३. प्रमाणवार्तिक, १०७ "न हि तयाऽर्थ परिच्छिद्य अर्थक्रियायां विसंवाद्यते।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525059
Book TitleSramana 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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