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________________ ५० : श्रमण, वर्ष ५७, अंक २ / अप्रैल-जून २००६ द्वारा शल्यक्रिया के दौरान होने वाली मृत्यु। क्योंकि चिकित्सक का उद्देश्य रोगी को किसी भी प्रकार का कष्ट पहुंचाना नहीं था इस लिये उसे पापकर्म का बन्ध नहीं होता। कहने का तात्पर्य यह है कि जैन धर्म अहिंसा की जितनी सूक्ष्म व्याख्या करता है उतनी कोई भी धर्म नहीं करता।. “एकहि साधे सब सधै'' यदि एक मात्र अहिंसा को ही अपने जीवन का मूलमन्त्र मान लिया जाय एवं तदनुसार व्यवहार किया जाय तो चहुंओर भाईचारे, मैत्री, बान्धुत्व एवं सहयोग का साम्राज्य होगा। वैर, शत्रुता, असयोग का कहीं नामो निशां नहीं होगा। महात्मा गांधी यदि अपने जीवन में किसी से सर्वाधिक प्रभावित थे तो वे थे -जैन सन्त एवं साधना के पर्याय श्रीमद् रामचन्द्र। उनकी साधना अप्रतिम थी। महात्मा गांधी का अहिंसा सिद्धान्त उन्हीं से अनुप्राणित था जिस पर चलकर उन्होंने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाई। उनका असहयोग आन्दोलन प्रकारान्तर से अहिंसा सिद्धान्त ही था। गांधीवाद को हम भगवान महावीर का आध्यात्मिक साम्यवाद कह सकते हैं। "जीओ और जीने दो" की अहिंसा पूर्ण वृत्ति द्वारा वर्गहीन समाज की रचना ही गांधीजी का जीवन-उद्देश्य था। गांधीवाद सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से सत्य और अहिंसा की ही आधारशिला पर खड़ा है जिसके प्रेम, त्याग, अपरिग्रह और सन्तोष मुख्य अंग हैं। आज गांधी और महावीर नहीं हैं किन्तु आज भी हमारा देश वैयक्तिक व्यवहार में ही नहीं अपितु राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय नीति निर्धारण में भी अहिंसा तत्त्व को मौलिक रूप से स्वीकार करता है। जैन अहिंसा भारत की ही नहीं अपितु विश्व की महान संस्कृति का प्रमुख घटक होने की क्षमता रखती है। क्योंकि इसका संदेश किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र के लिये न होकर दुनियां की समस्त मानव जाति के लिये है। अहिंसा की प्रकृति प्राकृतिक है। सत्य और अहिंसा जैसे विराट सिद्धान्तों के पीछे जातपात, ऊंच-नीच के बन्धनों को जोडना मनुष्य की भारी भूल रही है। आग या शूली जैसी कसौटी पर खडी होकर भी अहिंसा सिद्धान्त ने अपने विरोधियों पर, अपने अपराधियों पर जिस तरह से करुणा के आंसू बरसाये, जैन संस्कृति बड़े विश्वास के साथ उन आंसुओं की अर्चना में श्रद्धा का उपहार चढाती है। यही कारण है कि अहिंसा से लेकर अपरिग्रहवाद जैसे धार्मिक सिद्धान्तों को तीर्थंकरों ने किसी धर्मग्रन्थ से नहीं अपितु जीवन के अनुभवों से दुनियां को दिया। आज जो वर्गवाद, समुदायवाद, धर्म के तथाकथित ठीकेदार कदाग्रहों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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