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________________ भारत की अहिंसक संस्कृति : ५१ नाम पर अहिंसा का विरोध करते हैं वे भारत को दुबारा हजारों वर्ष पीछे उस युग की तरफ लौटाना चाहते हैं जो मूक प्राणियों के रक्त से रंजित था, और जिसके लिये जैन संस्कृति को भारी विद्रोह करना पड़ा। हालांकि मैं व्यक्तिगत रूप से इस बात से सहमत नहीं हूं कि जैन धर्म या बौद्ध धर्म का आविर्भाव वैदिकों की हिंसक संस्कृति के विरोध में हुआ। क्योंकि वैदिक संस्कृति को कथमपि हिंसक संस्कृति नहीं कहा जा सकता। हां यह अवश्य था कि उस समय यज्ञ यागादि में हिंसा का बोलबाला था जिसमें एक विशेष वर्ग या एक विशेष परिस्थिति को ही हिंसा का जिम्मेदार ठहराया जा सकता है न कि समस्त वैदिक संस्कृति को। वेदों में हमें अनेक मन्त्र ऐसे मिलते हैं जिनमें हिंसा को महापाप एवं घोर नर्क का कारण कहा गया है। ऋग्वेद का ऋषि कहता है- हे मित्र ! जो पशु का मांस खाता है उनके सिर फोड डालो।" हे अग्नि! मांस खाने वालों को अपने मुंह में रख६ आदि। अत: जैन धर्म की उत्पत्ति वैदिक कर्मकाण्ड या वैदिक हिंसा के विरोध में हुई, ऐसा कहना तथा वेदों को हिंसा का समर्थक कहना वेदों की प्रकृति के साथ अन्याय होगा।। जैन संस्कृति का उद्भव उस समय की मांग थी, किसी के विरोध की उपज नहीं थी। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन संस्कृति जो विश्वजनीन और सार्वभौमिक है, दैववाद, भाग्यवाद एवं ईश्वरवाद की गुलामी से मनुष्य को मुक्तकर उसका मनुष्यत्व के सर्वोच्च सिंहासन पर अभिषेक करती है। अन्यान्य धर्मों में जहां ईश्वर कर्मफल प्रदाता था वहां जैन धर्म ने वह अधिकार ईश्वर से छीनकर उसे मनुष्य के हाथ में दे दिया। जैन संस्कृति का ईश्वर वह मनुष्य है जो मनुष्य का आदर्श है। जब तक मनुष्य का अपना अनुभव मिथ्यावाद या कषायों के अन्धकार के नीचे दबा रहेगा, तबतक उसे किसी भी तरफ मोडा जा सकता है, उसकी मनोवृत्तियों को दूषित किया जा सकता है, किन्तु एक बार अहिंसा की ज्योति मन में जली, कषायों का शमन हुआ फिर सम्यक्त्व का आलोक परमपद का दर्शन करा देता है। इसी महान उपकार को लक्ष्य में रखते हुए जैन संस्कृति ने अहिंसक संस्कृति का प्रणयन किया जो महावीर की विश्वमानवता को विशिष्ट देन है। सन्दर्भः १. प्रबन्ध-प्रकाश, भाग-२ पृ. ३ २. ईशावास्योपनिषद् १-१ ३. तत्त्वार्थ सूत्र-७/१३ ४. आचारांग- १/२/३/६३ (जैन विश्वभारती से प्रकाशित) ५. ऋग्वेद १--८७-१६ ६. ऋग्वेद १०-८७-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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