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________________ भारत की अहिंसक संस्कृति : ४७ आगे बढती रही है। इकबाल ने ठीक ही कहा है सदियों से रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।। वस्तुत इस संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में भारतीय मनीषियों, वीर पुरुषों एवं महान आत्माओं का अविस्मरणीय योगदान रहा है। उन्हीं महान आत्माओं में छठी शताब्दी ईसापूर्व में विश्वजनीन मानव संस्कृति के महान प्रेरक, बाह्य एवं आभ्यन्तर बाधाओं से पीडित मानव समाज को स्वावलम्बन के उत्कट पथ को, और अन्त;करण द्वारा चारित्र्य शुद्धि, इन्द्रिय विजय, सत्य तथा अहिंसा के समाश्रय से उसकी उन्नति के सम्भावित ईश्वर पद को, अपने पूर्णत: आदर्श जीवन के उदाहरण से दर्शाने वाले भगवान महावीर का प्रादुर्भाव हुआ जिन्होंने न केवल २३ पूर्व तीर्थंकरों की परम्परा वाले जैन धर्म-दर्शन को एक नया रूप दिया बल्कि उसके उन्नयन एवं विकास के भी पुरोधा बने। भगवान महावीर का प्रादुर्भाव उस समय हुआ जब हिंसा और अधिनायकवाद का जबर्दस्त बोलबाला था। ब्राह्मण वर्ग जो धर्म और नैतिकता का प्रतिनिधित्व करता था, अपने दायित्व को लगभग भूल चुका था। यज्ञों में होने वाली हिसा धर्म के सर्वोच्च सिंहासन पर प्रतिष्ठित थी। शूद्र और स्त्री समाज को शास्त्रों के अध्ययन की रोक थी। जात्यभिमान चरम सीमा पर था। ऐसे समय में भगवान महावीर ने पतनोन्मुख भारतीय संस्कृति को एक चिर सत्य प्रदान कर उसे ऊर्ध्वगामी होने को प्रेरित किया। तत्कालीन धर्मध्वजियों, सामाजिक भ्रान्त रूढियों, अन्धविश्वासों तथा हिंसावृत्ति के सुदृढ दुर्ग ढह-ढह कर गिरने लगे। भगवान महावीर ने जिन सिद्धान्तों को, विचारों को दुनियां के सामने रखा, वे कोई नये नहीं थे। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह आदि सिद्धान्त किसी न किसी रूप में भारतीय वाङ्मय में पहले से अनुप्राणित रहे हैं। स्वयं जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म भगवान महावीर के पहले प्रतिष्ठित था। किन्तु महावीर ने न केवल उसमें ब्रह्मचर्य व्रत को जोडकर पंचयाम का उपदेश दिया अपितु अहिंसा जिसका एकांगी विकास ही तबतक हो पाया था, में सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आदि गुणों का विधान किया। उन्होंने अहिंसक जैन संस्कृति में अनेकान्त, स्याद्वाद प्रभृति कतिपय सिद्धान्तों का समावेश कर जैन धर्म को उसकी उंचाइयों पर प्रतिष्ठित किया जिसका मूल आधार अहिंसा है । प्रारम्भ से जैन धर्म का अहिंसा पर विशेष बल रहा है। अहिंसा वह विशेष स्वर्णिम धागा है जो ३००० वर्षों से भी अधिक समय से भारतीय धर्म एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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