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श्रमण, वर्ष ५७, अंक
अप्रैल-जून २००६ ॥
भगवान महवीर की देन भारत की अहिंसक संस्कृति
डा० ललिता शुक्ला
संस्कृति का अर्थ है - वे विचार, आचार और विश्वास जिनसे मानव का संस्कार किया जाता है; उसे उन्नत और समाज रचना के योग्य बनाया जाता है। संस्कृति को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि - " कस्यापि देशस्य समाजस्य वा विभिन्नजीवनव्यापारेषु सामाजिकसम्बन्धेषु वा मानवीयत्वदृष्ट्या प्रेरणाप्रदानां तत्तदादर्शानां समष्टिरेव संस्कृति:१" अर्थात् किसी देश या समाज के विभिन्न जीवनव्यापारों में या सामाजिक सम्बन्धों में मानवता की दृष्टि से प्रेरणा' प्रदान करने वाले उन-उन आदर्शों की समष्टि को ही संस्कृति समझना चाहिये। संस्कृति की आत्मा आचार, विचार और विश्वास की त्रिपुटी तथा रहन-सहन, खान-पान सम्बन्धी विविधतायें संस्कृति के विविध शरीर हैं। धर्म और संस्कृति का अटूट सम्बन्ध है। किसी भी धर्म की अपनी पृथक संस्कृति का इतना ही अर्थ है कि उसके अपने विश्वास, विचार और आचार की धारा जुदी है। जो परम्परागत अपने धर्म और सम्प्रदाय को ही भारतीय संस्कृति समझ बैठते हैं वे संकीर्ण दृष्टिवाले हैं। व्यापक रूप से भारतीय संस्कृति देश के परस्पर विरोधी तत्त्वों को मिलाने वाली, गंगा की सतत् अग्रगामिनी तथा विभिन्न धाराओं को आत्मसात करने वाली है।
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। वैदिक एवं श्रमण दो धाराओं में प्रवहमान इस भारतीय संस्कृति ने अपने विकास पथ में अनेक विरोधों का सामना किया। कभी विदेशी आक्रामकों ने, कभी तत्कालीन विशेष परिस्थितियों ने, तो कभी अन्दरूनी अलगाववादी ताकतों ने भारतीय संस्कृति की फिजां को तार-तार करना चाहा किन्तु चूंकि सहिष्णुता और उदारता भारतीय संस्कृति की घुट्टी में रही है इसलिये सभी प्रकार के विरोध का शमन और समन्वय । करती हुई भारत की गंगा-यमुनी संस्कृति नवीनतर विस्तार और प्रवाह के साथ * रीडर, शिक्षाशास्त्र विभाग, हरिश्चन्द्र पी.जी. कालेज, वाराणसी।
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