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वैदिक एवं श्रमण परम्परा में अहिंसा : ४५
"संस्कृति और जैन) का मूलाधार अहिंसा माना गया है। प्रत्येक प्राणी के लिये सुख एवं शान्ति अभिलषित है। वैयक्तिक सुख शान्ति ही नहीं, विश्व शान्ति की प्रक्रिया में भी अहिंसा को व्यावहारिक जीवन में प्रतिष्ठापित करने की आवश्यकता निर्विवाद है। आधुनिक युग का आतंकवाद हिंसक वातावरण की उपज है, जिसने विश्व के प्रत्येक देश को अहिंसा का महत्त्व समझने लिये वाध्य किया है। भारतवर्ष की संस्कृति का "उत्स" अहिंसा है। भारतवर्ष अहिंसा का सन्देश समस्त विश्व को देता आ रहा है जिसका प्रतिफल यह है कि विश्व के प्राय: सभी धर्मों में अहिंसा को उपादेय माना गया है। आधुनिक युग में, धर्म, दर्शन के क्षेत्र में, खण्डन-मण्डन के स्वर के स्थान पर समन्वयात्मक दृष्टिकोण
और सहिष्णुता को अपनाने को प्रमुखता दी जा रही है। विद्वानों का यह सर्वत्र प्रयास चल रहा है कि सभी धर्मों, दर्शनों में व्याप्त समानता को अधिकाधिक रेखांकित किया जाय ताकि वे एकता के सूत्र में बंधकर, सामूहिक रूप से समस्त मानवता के लिये सुखशन्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकें। सन्दर्भ १. सिंह, बी०एन ; 'धर्म दर्शन; स्टूडेण्ट्स फ्रेंड्स एण्ड कम्पनी, वाराणसी, (पथम
संस्करण), १९८९, पृष्ठ संख्या २१०. २. धृतिः क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। धीविद्या स्त्यमक्रोधो दशकं धर्मक्षणम्।।
मनुस्मृति ६/९२ ३. मां स भक्षयिताऽमुत्र यस्य मांसमिहादम्यहम्। एतन्मांसस्यसस्य मांसत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः।।
मनुस्मृति ५/५५ (सिंह बी०एन, धर्मदर्शन, पृष्ठ संख्या २१९) ४. सिंह, महेन्द्र नाथ; बौद्ध तथा जैन धर्म; वाराणसी : विश्वविद्यालय प्रकाशन, (प्रथम
संस्करण), १९९०, पृष्ठ संख्या-१५. बौद्ध तथा जैन धर्म-दर्शन, ब्राह्मण चिन्तन (वेदकालीन वेद परम्परा के दर्शन) तथा वैदिक धर्म समानान्तर धर्म व्यवस्थायें हैं और इनका विकास ब्राह्मण धर्म के विरोध में 'पालिशास्त्र' धम्मपद और 'प्राकृतशास्त्र' 'उत्तराध्ययनसूत्र' का संकलन और प्रसारण विकसित हुआ। तीनों की अपनी एक जातीय संस्कृति है।
वही, पृष्ठ संख्या ७-९. (प्राक्कथन के अन्तर्गत) ७. देवेन्द्रमुनि; 'जैन दर्शन-एक विश्लेषण', नयी दिल्ली : यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन,
१९९७. ८. श्रीकान्त पाण्डेय; 'भारतीय दर्शन', मेरठ, साहित्य भंडार, १९८६.
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