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३८ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक २ / अप्रैल-जून २००६ नियम बतलाये गये हैं। दस यम हैं- ब्रह्मचर्य, दया, क्षमा, सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अवल्कता, दम और माधुर्य। दस नियम हैं- स्नान, मौन, उपवास, यज्ञ, स्वाध्याय, उपस्थ-निग्रह, गुरु-सेवा, शौच, अक्रोध और अप्रमादता। इस प्रकार सनातन धर्म या साधारण धर्म के नियम प्राय: सभी के समान ही हैं। महात्मा मनु के दस धर्म के अतिरिक्त भी कुछ सनातन धर्म के लक्षण माने गये हैं। (यद्यपि इनका सार महात्मा मनु के दस लक्षणों में प्रकारान्तर से आ जाता है)।
सनातन धर्म में अहिंसा, हिंसा का निषेध है। किसी भी प्रकार से हिंसा मान्य नहीं। सभी प्राणी जीवन का संरक्षण चाहते हैं। अतः किसी के भी जीवन का विनाश अनुचित है। इस अहिंसा को शास्त्रों में "परम धर्म" (अहिंसा परमो धर्म:) कहा गया है। वेद की वाणी है- किसी भी प्राणी की हिंसा न करें (न हिंस्यात् सर्वभूतानि)। जिस प्रकार हमारा जीवन हमें प्रिय है, उसी प्रकार दूसरों को भी अपना जीवन प्रिय है। किसी का वध करना पाप है। यह आचार का सनातन नियम है। इस आचार को मानने वाला किसी की हिंसा नहीं करता अथवा दूसरों के द्वारा की गयी हिंसा का समर्थन नहीं करता। अहिंसा शाश्वत धर्म मानते हुए महात्मा मनु ने आठ प्रकार की हिंसा का वर्णन किया है१. अनुमन्ता - जिसकी अनुमति के बिना वध नहीं हो सकता २. विशसिता - वध किये हुए प्राणियों के अंग को काटना ३. निहन्ता - वध करने वाला ४. विक्रेता - मांस बेचने वाला ५. क्रेता - मांस खरीदने वाला ६. संस्कर्ता - मांस को पकाने वाला ७. अपहर्ता - उपहार के रूप में मांस को देने वाला एवं ८. खादक - मांस खाने वाला।
मनुस्मृति में 'मांस' शब्द का निर्वचन बड़ा सुन्दर है। "माम् ” शब्द का अर्थ "मुझको” है और सः” का अर्थ "वह" है। अत: 'मांस' शब्द का अर्थ है कि इस लोक में जिसका मांस खाता हूँ वह परलोक में मुझको खायेगा। इससे स्पष्ट है कि अहिंसा धर्म है। अहिंसा को धर्म मानने के लिये दया की आवश्यकता है। इसीलिये दया को भी धर्म माना गया है। जिसके हृदय में दया
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