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२४ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक २ / अप्रैल-जून २००६
वास्तव में सुख-दुःख का आत्मा के साथ सम्बन्ध नहीं है। यदि कहा जाय कि सुख-दुःख का ज्ञान बुद्धिजन्य है तो यह भी ठीक नहीं क्योंकि सांख्यमत में बुद्धि जड़ मानी गयी है।
सुख, दुःख आदि का अनुभव करने वाली होने पर बुद्धि को जड़ मानना भी विरुद्ध है।९२ क्योंकि यदि बुद्धि को जड़ माना जाय तो बुद्धि से ज्ञेय पदार्थों का ज्ञान नहीं हो सकता और यह कहना कि बुद्धि अचेतन होकर भी चेतनशक्ति के सम्बन्ध से चेतनायुक्त जैसी प्रतिभासित होती है, अयुक्तियुक्त है। चैतन्ययुक्त पुरुष आदि के दर्पण में प्रतिबिम्बित होने से दर्पण की चैतन्यस्वरूप से परिणति नहीं होती । चेतना और अचेतना का स्वभाव अपरिवर्तनीय है, उसमें किसी के द्वारा भी परिवर्तन नहीं हो सकता। तथा ' अचेतन बुद्धि चेतना सहित जैसी प्रतिभासित होती है,' यहाँ 'इव' (जैसी) ' शब्द से अचेतन बुद्धि में चेतना का आरोप किया गया है । परन्तु आरोप से अर्थक्रिया की सिद्धि नहीं होती, जैसे यदि किसी बालक का अत्यन्त क्रोधी स्वभाव देखकर उसका अग्नि नाम रख दिया जाय, परन्तु वह अग्नि की जलाने, पकाने आदि क्रियाओं को नहीं कर सकता। इसी प्रकार विषयों का ज्ञेय पदार्थों का ज्ञान चेतनाशक्ति से ही हो सकता है, अचेतन बुद्धि में चेतना का आरोप करने पर भी बुद्धि से पदार्थों का ज्ञान सम्भव नहीं। इसलिए जो बुद्धि के धर्म आदि आठ गुण बताये गये हैं, वे भी केवल वचनमात्र हैं, क्योंकि धर्म आदि आत्मा के ही गुण हो सकते हैं, अचेतन बुद्धि के नहीं। इसीलिए अहङ्कार को भी बुद्धिजन्य नहीं मानना चाहिए, क्योंकि अहङ्कार अभिमान रूप है, इसलिए वह आत्मा से ही उत्पन्न होता है, अचेतन बुद्धि से उत्पन्न नहीं हो सकता है। १३
आकाश आदि का शब्द आदि पाँच तन्मात्राओं से उत्पन्न होना अनुभव के सर्वथा विरुद्ध है। १४ प्रायः सभी दार्शनिकों ने आकाश को नित्य स्वीकार किया है; नित्य एकान्तवाद (सत्कार्यवाद) को मानकर भी केवल सांख्य के अनुयायी ही उसकी शब्द तन्मात्रा से उत्पत्ति मानकर असंगत प्रलाप करते हैं। तथा, जो परिणामी (उपादान) वस्तु के परिणाम में कारण है, वह अपने कार्य का गुण नहीं हो सकता, इसलिए " शब्द को आकाश का गुण मानना" भी कथन मात्र है। इसी प्रकार तब वाक् आदि इन्द्रियाँ नहीं कही जा सकतीं ५, क्योंकि दूसरों का प्रतिपादन करना, किसी वस्तु को ग्रहण करना, विहार करना, मल त्याग करना आदि, वाक्, पाणि, पाद, पायु आदि कर्मेन्द्रियों से होने वाले कार्य शरीर, के अन्य अवयवों से भी किये जा सकते हैं; जैसे- उंगलियों द्वारा भी दूसरों को प्रतिपादित किया जा सकता है। अतएव वाक् आदि शरीर के अवयव हैं,
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