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________________ श्रमण, वर्ष ५७, अंक २ ___ अप्रैल-जून २००६ जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में सांख्य का विकासवाद डॉ० सत्यदेव मिश्र सांख्य दर्शन का विकासवाद सृष्टि के उद्भव और विकास का सिद्धान्त है। सांख्य के विकासवाद की पृष्ठभूमि में इसका सत्कार्यवाद का सिद्धान्त निहित है, जिसके अनुसार कार्य उत्पत्ति के पूर्व अपने उपादान कारणr में अव्यक्त रूप में विद्यमान रहता है। सृष्टि का उपादान कारण प्रकृति है। सांख्य के अनुसार यह सृष्टि-रूप कार्य जगत् भावात्मक तथा सद्रप है, अत: इसका मूल उपादान कारण भी भावरूप तथा सद्रूप ही होना चाहिए। सत्कार्यवाद के अनुसार अभाव से भाव एवं भाव से अभाव के परिणाम की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए जगद्रूप भाव कार्य का कारण भावात्मक प्रकृति ही है। प्रकृति से होने वाली परिणाम-रूप यह सृष्टि तुच्छ या मिथ्या नहीं, अपितु सत्य तथा वास्तविक है। प्रकृति का यह सृष्टि-प्रवाह निरन्तर गतिशील नदी के सदृश है और अनादि काल से चला आ रहा है तथा अनन्त काल तक चलता रहेगा। सत्कार्यवाद सांख्य दर्शन का केन्द्रीय सिद्धान्त है और इसी के आधार पर वह अपने महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त प्रकृतिपरिणामवाद की स्थापना करता है। सांख्य के अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि उत्पत्ति के पूर्व प्रकृति के अन्दर अव्यक्त रूप में विद्यमान रहती है। सृष्टि कोई नवीन उत्पत्ति नहीं है तथा प्रलय सृष्टि का विनाश नहीं है। प्रकृति में जो अव्यक्त है उसी का व्यक्त होना सृष्टि है। इसी प्रकार प्रलय सांसारिक पदार्थों का तिरोहित होना है अर्थात् सर्ग कार्य-समूह का आविर्भाव और प्रलय उसका तिरोभाव मात्र है। सृष्टि प्रकृति का विकार या परिणाम है। सांख्य दर्शन का यह सिद्धान्त प्रकृतिपरिणामवाद कहलाता है। सत्त्व, रजस् और तमस् तीनों गुणों की साम्यावस्था को प्रकृति कहा गया है।३ गुणों की साम्यावस्था में सत्त्व सत्त्व में रजस् रजस् में, और तमस् तमस् में खिंचकर अवस्थित हो जाते हैं। सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति निरन्तर परिणमनशील है, उसमें रजोगुण के रूप में __* जेनरल फेलो, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, दर्शन एवं धर्म विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी-२२१००५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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