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________________ प्राचीन भारत में आर्थिक विचार : जैन आगमों के परिप्रेक्ष्य में : १९ अधिक धन संचय असमानता उत्पन्न करता है; क्योंकि एक का संचय दूसरे का अभाव बन जाता है। अत: उन्होंने 'अपरिग्रही' समाज की नींव डाली। जिससे सम्पत्रों के 'अपरिग्रह' और दान की भावना से निर्धनों की आवश्यकताओं की भी पर्ति होती थी और समाज में आर्थिक समानता के आदर्श की स्थापना होती थी। निष्कर्षत: प्राचीन भारत के आर्थिक विचार के जैन आगमों के संदर्भ में विवेचन से ज्ञात होता है कि प्राचीन ग्रन्थकारों के आर्थिक आदर्श- शतहस्तः समाहर, सहस्रहस्त: विकीर्णः' एवं 'ईशावास्यमिदं सर्वम्' केवल सैद्धान्तिक रूप में अभिव्यक्त होते थे, और व्यक्ति समाज तथा राष्ट्र में पूर्ण आर्थिक समानता का अभाव प्राप्त था। जबकि जैन आगमों के रचनाकाल के समय श्रमण उपासक 'अस्तेय' और 'अपरिग्रह' (आर्थिक सम-वितरण) के नूतन अर्थशास्त्र की संकल्पना को व्यवहार में अपनाकर वर्ग-संघर्ष-मुक्त एक आदर्श समाज की नींव रखे जो व्यक्ति, समाज, राष्ट्र के विकास और सम्वर्धन का आधार बना। विनोबा भावे ने 'भूदान आन्दोलन' के माध्यम से सीमित ही सही, परन्तु सम्पदा के विषय में यह प्रमाणित कर दिया कि जैनों का 'अपरिग्रह' (आर्थिक सम-वितरण) सिद्धान्त व्यावहारिक जीवन मूल्यों का द्योतक है जिसको आत्मसात करने की वैश्विक दुनियाँ को आज महती आवश्यकता है। संदर्भ १. जैन, जगदीशचन्द्र, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, आर्थिक-स्थिति, पृ. ११९। २. प्राचीन जैन साहित्य में आर्थिक जीवन, डॉ. कमल जैन, प्रकाशकीय, पृ. ३। ३. मिश्र, जयशंकर, प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, पृ. ४८४-८५, प्रकाशन बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, १९७४। ईशावास्योपनिषद्, १। ५. सिन्हा एवं सिंघई, आर्थिक विचारों का इतिहास, पृ. २०६; प्रकाशक- मयूर पेपर बैंक्स, तेरहवाँ संस्करण : २००१। ६. पंत व सेठ, आर्थिक विचारों का इतिहास, पृ. ४३३-३४, प्रकाशक, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, प्रथम संस्करण-१९८२। ७. 'असंविभागी णहु तस्य मोक्खो'- दशवैकालिक ९/२३। ८. जैन, नेमिचन्द्र, तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, पृ. ५२। ९. योजना, अप्रैल ०१, २००१ में प्रकाशित जी. एल. पुणताम्बेकर का लेख- अहिंसा और के अर्थशास्त्र की प्रतिष्ठा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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