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गुजराती अर्थ :- वारंवार ते सत्पुरुषे पूर्वेकहेला पवनादि अनेक प्रकारना उपचार कर्या तेथी गयेली वेदनावाला मे क्षणवारमां चेतना ने प्राप्त करी । हिन्दी अनुवाद :- बारबार उस सत्पुरुष ने पूर्व में कहे गये । पवनादि अनेक प्रकार के उपचार किये अतः वेदना का नाश होने पर उसी क्षण चेतना प्राप्त हुई।
गाहा :
उम्मीलिय- लोयण - जुयलएण दिठ्ठो विसिट्ठ- संठाणो । नव- जोव्वणो जुवाणो पच्चक्खं पंचबाणोव्व ।। २४६।। संस्कृत छाया :
उन्मीलित- लोचनयुगलेन दृष्टो विशिष्ट संस्थानः । नवयौवनो युवा प्रत्यक्षं पञ्चबाण इव || २४६ । गुजराती अर्थ :- पछी खुलेला लोचनवड़े में विशिष्ट आकृतिवाळा, साक्षात् कामदेव जेवा, नवयौवन युक्त युवक ने मारी सामे जोयो । हिन्दी अनुवाद :- बाद उन्मीलित नयनों से मैंने विशिष्ट आकृतिवाले, साक्षात् कामदेव तुल्य नवयौवन सम्पन्न युवक को अपने सामने देखा ।
गाहा :
भणियं च तेण किं भद्द! बाहए, दंसियं मए गलयं ।
अह संवाहण - विहिणा तंपि हु सत्यं कयं तेण ।। २४७ । । संस्कृत छाया :
भणितं च तेन किं हे भद्र! बाधते दर्शितं मया गलकम् ।
अथ संवाहन - विधिना तमपि खलु स्वस्थं कृतं तेन ।। २४७ ।। गुजराती अर्थ :- ते पुरुषे मने कह्यु हे भद्र! आपने क्यां पीडा थाय छे? त्यारे मे गलु- बताव्यु, संवाहन विधि वड़े ते कंठनी पीडा पण तेण दूर करी । हिन्दी अनुवाद :- उस पुरुष ने मुझसे पूछा - हे भद्र! आप को कहाँ पीड़ा हो रही है। तब मैंने गर्दन बताई, और उसने संवाहनविधि से गर्दन की पीड़ा को अच्छा कर दिया।
गाहा :
विगय-सयल - पीडो सत्थ- देहो तया हं किसलय - रइयम्मी सत्थरे संनिविट्ठो । विरह - विहुरियंगो दीह नीसास - खिन्नो अहिलसिय-पयत्था - ऽसाहणुव्विन्न- चित्तो ।। २४८ । । संस्कृत छाया :
विगतसकलपीडः स्वस्थदेहस्तदाऽहम्, किसलयरचिते स्रस्तरे
संनिविष्टः ।
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