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________________ हिन्दी अनुवाद :- उसी वक्त किसी पुरुष ने वृक्ष की शाखा पर लटकते मेरे देहपाश को छेदकर, धीरे से नीचे उतारकर, कोमल शीतल पवन डालने लगा। गाहा : तत्तो तुसार-सीयल-सारणि-नीर-च्छडाहिं संसित्तो। उल्हासिऊण हिययं अंगं संवाहियं सव्वं ।। २४३।। संस्कृत छाया : ततस्तुषारशीतलसारणिनीरच्छटाभिससिक्तः। . अवस्त्रस्य हृदयमङ्गं संवाहितं सर्वम् ।।२४३।। गुजराती अर्थ :- त्यारपछी ते ज पुरुषे हिम समान शीतल नीक ना पाणीने छांटवा वड़े शरीर ने सिंम्यु लाग्यो, आम हृदय ने खुल्लु करीने सर्व अंगनु मर्दन कर्यु। हिन्दी अनुवाद :- फिर वही पुरुष हिम तुल्य शीतल नीक का पानी के छीटों द्वारा शरीर को सींचने लगा, इस तरह हृदय को खुल्ला करके उसने सम्पूर्ण अंगों की मालिश की। गाहा : मुच्छा-निमीलियच्छो सव्वं सुविणंव तं विमन्नतो। कोमल-किसलय-रइए सत्थरए सोविओ तेण ।। २४४।। संस्कृत छाया : मूर्छा-निमिलिताक्षः सर्वं स्वप्नमिव तं विमन्यमानः । कोमलकिसलयरचिते स्त्रस्तरे शायितस्तेन ।।२४४।। गुजराती अर्थ :- पछी सुकोमल पल्लवोथी बनावेल शय्यामां मने उपाडीने धीरे थी तेणे सुवड़ाव्यो पण नेत्र मूर्छाथी मींचाई गयेला तेथी आ सर्व स्वप्ननी जेम मानतो हतो हिन्दी अनुवाद :- फिर मुझे सुकोमल पल्लवों से बनी शय्या में धीरे से सुलाया किन्तु मूर्छा से नेत्र बंध हो गये थे अत: सबकुछ स्वप्नवत् भासित होता था। गाहा : पुणरुत्त-पवण-करणाइयाहिं नाणाविहाहिं चिट्ठाहिं । गय-वेयणेण तत्तो खणंतरा चेयणा लद्धा ।। २४५।। संस्कृत छाया : पुनरुक्त-पवन-करणादिभि र्नानाविधाभिश्चेष्टाभिः। गतवेदनेन ततः क्षणान्तराच्चेतना लब्धा ।।२४५।। 216 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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