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________________ हिन्दी अनुवाद :- प्रिया के समागम की आशा से भ्रष्ट होने से निःश्वास निकलने से अपने हृदय को किस तरह स्थिर रखू मैं वह भी नहीं जानता?। गाहा : ता किं करेमि इण्हिं अहवा किं एत्थ बहु-विगप्पेहिं। गुरु-विरह-दुक्ख-समणो पाण-च्चाओ परं जुत्तो।। २३१।। संस्कृत छाया :- मरण साहस तस्मात् किं करोमीदानीमथवा किमत्र बहुविकल्पैः । गुरुविरह-दुःखशमनः प्राणत्यागः परं युक्तः ।।२३१।। गुजराती अर्थ :- हवे हुं शुं करू? अथवा अन्यारे बहुविचारो वड़े शु! थशे. मोटाविरहना दुःखने शमाववा करता प्राणत्याग करवो एज परम उपाय छे। हिन्दी अनुवाद :- अब मैं क्या करूं? अथवा बहुविकल्पों से क्या फायदा? भारीविरह के दुःख को शान्त करने के लिए प्राणत्याग ही परम उपाय है। गाहा : जइवि न जुज्जइ एसो विवेय-जुत्ताण उत्तम-नराण। तीए विरहे तहवि हु सक्केमि न जीवियं धरिउं।। २३२।। संस्कृत छाया : यद्यपि न युज्यते एषो विवेकयुक्तानामुत्तमनराणाम्। तस्या विरहे तथापि खलु शक्नोमि न जीवितं धर्तुम् ।।२३२।। गुजराती अर्थ :- विवेक युक्त योग्य मनुष्योने जो के आ योग्य नथी तो पण तेणीना विरहमा जीवित धारण करवा माटे पण हुं समर्थ नथी। हिन्दी अनुवाद :- विवेक युक्त योग्य मनुष्य को यह उचित नही है। फिर भी विरहावस्था में जीवन धारण करना भी मेरे लिए शक्य नहीं है! गाहा : ता एत्थेव तरु-वरे तीए अंदोलणेण सुपवित्ते । उब्बंधिय अप्याणं पाण-च्चायं करेमित्ति ।। २३३।। संस्कृत छाया :- पाश बंधन ततोऽत्रैव तरुवरे तया अन्दोलनेन सुपवित्रे। उद्बध्याऽऽत्मानं प्राणत्यागं करोमीति।।२३३।। गुजराती अर्थ :- आथी तेणीना हींचका वड़े पवित्र थयेला आ ज वृक्ष पर शाखा वड़े गळे पाशो बांधीने हुं प्राण त्याग करू? 212 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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